दीनदयाल की विधवा की दस लाख की लॉटरी खुल गयी!घर रिश्तेदारों से भर गया I छोटा दो कमरों का मकान! मॉ बेटी दो प्राणी, दौनों परेशान!
"अम्मा, ये लोग कौन हैं,और कब तक रहेंगे"!
"बेटी,ऐसे नहीं बोलते, मेहमान हैं,बधाई देने आये है"!
"मैने तो कभी नहीं देखा इनको"!
"ये तेरे बापू के करीबी रिश्तेदार हैं"!
"अम्मा,दो महिने पहले जब बापू शांत हुए थे, तब तो कोई नहीं आया था"!
मंदिर में भज़न बज रहा था,"सुख के सब साथी, दुख में न कोय"!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सभी इस सत्य को जानते है पर धोका भी उठाते हैं
हार्दिक आभार आदरणीय विजय जी, सीमा जी, कांता जी, आप लोगों ने मेरा उत्साह बढाया, लघुकथा को सराहा!पुनः आभार!
अति सुन्दर लघुकथा कही है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय सुशील जी, आदरणीया प्रतिभा जी, आपका हार्दिक आभार!लघुकथा के अवलोकन,सराहना हेतु समय निकाला!पुनः हार्दिक आभार!
कडवी सच्चाई ये ही है रिश्तों की , बधाई इस सार्थक रचना के लिए आपको आ० तेज वीर सिंह जी
यथार्थ को उजागर करती भावपूर्ण लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी, लघुकथा अवलोकन एवम सराहना करने हेतु पुनः आभार!
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