बेटे के पास विलायत गए दीवान जी को पोते पोतियों की चाल ढाल अच्छी नही लग रही थी | उनका रातों को देर से आना, बेढंगे कपड़े पहनना, घर पर ही दोस्तों के साथ मदिरा का सेवन आदि उनको बिलकुल भी बर्दास्त नही हो रहा था |
एक दिन घर पर पार्टी चल रही थी | डीजे के तीव्र संगीत के साथ जम के मदिरापान करते लड़के-लड़कियों का हुल्लड़ करना उनको रास ना आया और उन्होंने बेटे से कह डाला कि, " ये सब क्या है विमल ? "
"बाबू जी नई पीढ़ी है | "
"नई पीढ़ी है तो क्या इस तरह..... ? "
"ये अपनी तरह से जीना चाहते है, इनसे ज़ोर ज़बरदस्ती नही कर सकते | इनकी सोच अलग है बाबू जी |"
"बेटा, कल ही मैं वापस जाना चाहता हूँ, यूँ अपने संस्कारों को दम घुटते नही देख सकता | "
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अच्छा सार्थक सन्देश देती हुई लघु कथा हार्दिक बधाई नोहर सिंह जी .
हमी हवा देते है हमी बाद में रोते और पछताते हैं . किशोर मन को भटकने से बचाने का दायित्व हमारा है यदि नहीं तो खाक हम अनुभवी हैं
आदरणीय नोहर सिंह जी बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
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