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आदरणीय मिथिलेश जी आपके मार्गदर्शन से इस ग़ज़ल का असल स्वरूप कुछ यूँ हुआ.....
मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख,
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख |
उनके ज़ुल्मों से तंग आकर, मर्यादा मत भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये, अपना मन मत भारी रख ।
जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।
कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।
मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
मत गिर जाना नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।
यूँ ही अपना स्नेह बनाए रखियेगा.....आभार !!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ग़ज़ल पर आने के लिए तह-इ-दिल से शुक्रिया --सर आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा ये ग़ज़ल कहना सफल हुआ... |उम्मीद है आप का इसी तरह सहयोग और स्नेह मिलता रहेगा | साभार !!
आदरणीय हर्ष भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥ मिथिलेश भाई जी ने काफी कुछ समझा दिया है , खयाल कीजीयेगा , मत और न दोनो समानार्थी हैं , मत करो या न करो , दोनो एक साथ सही नही है , देख लीजियेग ।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी कितने कम शब्दों में आपने इतना कुछ समझा दिया | मेरे लिए आज का दिन बहुत ही शुभ और फायदेमंद साबित हुआ है सर | हाँ सर....आदरणीय गोपाल सर के संकेतानुसार ही मैंने "न" की जगह "अब" रखने का सोचा था | दिल से शुक्रिया |साभार !!
आदरणीय हर्ष जी, मफ्ऊलातुन के विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं है.
"न" और 'ना' दोनों का वज्न 1 ही होता है.
//मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,// इस मिसरे में मत और न का एक साथ प्रयोग मुझे समझ नहीं आया. आपको इस विषय पर आदरणीय गोपाल सर भी संकेत कर चुके है. व्याकरण की दृष्टि से तो सर्वथा गलत है.
आपके इस मिसरे में देखिये कितने बढ़िया चौकल बने है और मिसरे की रवानी भी खूब है
कितने / बलवे / झेले / तूने / यारों / से अब / यारी / रख
फैलुन / फैलुन / फैलून / फैलून / फैलून / फैलून / फैलून / फा
चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल/ चौकल / चौकल/ द्विकल
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी अरकान तो स्पष्ट ही है वज़न के अनुसार सर |
क्या रुक्न के समूह को अरकान नहीं समझा जा सकता ?
जैसे मैंने लिखी....
2222 2222 2222 222
सर क्या हमारे लिए ये ज़रूरी है कि हम उर्दू में ही अरकान को स्पष्ट करें | मैंने कहने का अर्थ इतना है सिर्फ...
क्या हम सात फैलुन + एक फा की जगह
तीन मफ्ऊलातुन + एक मफ्ऊलुन ..नहीं कह सकते ?
सर "कहीं कहीं द्विकल-त्रिकल-चौकल के संयोजन"..........इस बारे में भी इतना गूड समझ से परे हुआ जाता है...थोड़ा आसान सा शब्द दीजियेगा जिस से मैं आपके दिशा निर्देश का पालन कर सकूं |
साभार !
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका ग़ज़ल पर रुकना मेरी कलम को गति देना सा लगता है | एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है | शुक्रिया सर | आपने जो शेर दर शेर इंगित किया तप्सिरा देखा हूँ ...आपकी लेखनी से निकले शब्दों से ग़ज़ल की आब भी बढ़ी है , अच्छी तरह समझ में भी आया | इसके लिए हृदय ताल से आपका आभारी हूँ |.....लेकिन दुबिधा दूर करने हेतु सर "न" को '2" मात्रा में लेना क्या अनुचित है ? अगर ऐसा है तो मुझे अपनी बहुत सी गजलों में दुबारा अपने अहसासों संग उतरना होगा |
दुसरे बहर के मुताल्लिक मैंने अपनी ओर से जिस बहर को कहा है ...
वो 2222 2222 2222 222 ये है | लेकिन
आपने उसे 22 22 22 22 22 22 2 कि ओर इशारा किया है | मैंने यहाँ कई और सज्जन भी हैं जो आप की ही कही बहर पर कहते हैं | इसके समाधान हेतु भी कुछ प्रकाश डालिएगा तो मेरी दुविधा दूर हो सके |
आपकी हौंसिला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया एक बार फिर.....इंतज़ार में |
साभार
हर्ष महाजन
आदरणीय हर्ष महाजन जी बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है. सात फैलुन + एक फा है इसे पढ़कर 16-14 पर यति वाले कुकुभ छंद की याद भी आ गई.इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है. कहीं कहीं द्विकल-त्रिकल-चौकल के संयोजन अथवा न के प्रयोग से मिसरे बेबहर लग रहे थे उन्हें इंगित कर रहा हूँ.
मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,...... मेरी चिंता मत कर लेकिन, दिल की चिंता जारी रख
कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।...... बढ़िया मतला
उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,...... उनके ज़ुल्मों से तंग आकर, मर्यादा मत भूलो तुम,
कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।.... कर्मों का सब लेखा है ये, अपना मन मत भारी रख ।
जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,
ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।........ बहुत बढ़िया शेर
कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,
पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।........... वाह भई बहुत खूब कहा है.
मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,
गिर न पाये नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख ।.... मत गिर जाना नज़रों से तू, इतनी तो खुद्दारी रख । यहाँ आप लिख न रहे हैं लेकिन उच्चारण ना का कर बह्र के वज्न को संतुष्ट करना पड़ रहा है.
इस बेहतरीन ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई.
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