2212 2122
मूरत बनी रंग भरते!
दोस्ती निभा दंग करते!
कोई बना कुछ रहा अब
कुछ तो नियम भंग करते।
उनकी कथा क्या कहूँ अब
हिन्दी हसीं तंग करते।
लिखते अलिपि आँख मूँदे
सब रंग बद रंग करते।
वह तो खड़ी, है भरी वह,
वे छेड़ क्यूँ अंग करते?
"मौलिक व अप्रकाशित"@ मनन
खड़ी=खड़ीबोली
छेड़=छेड़छाड़
अलिपि=लिपि से बाहर
Comment
आदरणीय मनन भाई , छोटी बह्र मे ग़ज़ल प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । बह्र बड़ी लिये होते तो शायद बात और अच्छे से कह पाते , ऐसा मुझे लगता है , छोटी बह्र में बात समा नही पाई ऐसा लगता है ।
बधाई प्रयास के लिये आदरणीय मनन जी
बढिया प्रस्तुति ....... बधाई आदरणीय मनन कुमार जी
प्रस्तुति हेतु बधाई
कविता आगे बढ़ते बढ़ते ठहर सी जाती है . सादर.
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