चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे
आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर
चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे
------------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० भुवन निस्तेज जी ,आपका तहे दिल से आभार |
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
waah kyaa bat hai...
आ० धर्मेन्द्र जी ,आपकी दाद पाकर मेरा उत्साह दुगुना हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |
आ० गिरिराज जी ,आप जैसे ग़ज़लकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है बहुत बहुत शुक्रिया आपका ,मेरा लिखना सार्थक हुआ |
आ० रवि शुक्ला जी,आपका बहुत- बहुत आभार .
क्या बात है , आदरणीया राजेश जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अश आर बेहतरीन हुये हैं । दिली मुबारक बाद कुबोल कीजिये ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें
आ० कांता रॉय जी, आप जैसे संवेदनशील पाठक से दाद पाकर कोई भी रचना स्वतः धन्य हो जाती है मेरे उत्साह में इजाफ़ा करती हुई इस प्रतिक्रिया के लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ |
प्रिय प्रतिभा पाण्डेय जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ |
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