1222---1222---1222-1222 |
|
मैं घर से दूर आया हूँ मगर कुछ ख़ास रखता हूँ। |
तुम्हारी याद की ताबिश हमेशा पास रखता हूँ। |
|
कभी वट पूजती हो तुम, दिखा के चाँद को चलनी |
मुझे अवसर नहीं ऐसे मगर उपवास रखता हूँ। |
|
मैं शबनम देख लेता हूँ तुम्हारी याद आती है |
यही ख्वाहिश लिए मै जेब में अब घास रखता हूँ। |
|
किसी भी लक्ष्य को पाकर, ख़ुशी से झूमता लेकिन |
सफलता में भी अंतिम सत्य का आभास रखता हूँ। |
|
कभी मंदिर या मस्जिद के बुलावे पर नहीं जाता |
परम सत्ता पे मैं लेकिन बहुत विश्वास रखता हूँ। |
|
चलो माना कि दरिया हो, मगर तहजीब मत भूलों |
सुनो मैं भी समंदर से जियादा प्यास रखता हूँ। |
|
कभी मैंने नहीं चाही खुशामद या सिफत लेकिन |
शगुफ्ता इक तबस्सुब की जरा सी आस रखता हूँ। |
|
हथेली पर मेरे कल की तमन्ना रक्स करती है |
मगर मैं भी हमेशा हाथ में इतिहास रखता हूँ |
|
सुनो, सुन के बताओं क्या इसी को दर्द कहते है? |
तुम्हारे सामने अपने सभी अहसास रखता हूँ। |
|
मैं ग़ालिब मीर पढता हूँ, ग़ज़ल के साथ में लेकिन |
कबीरा, सूर, मीरा और तुलसीदास रखता हूँ। |
|
------------------------------------------------------------ |
Comment
आ० मिथिलेश सर! जिंदाबाद गज़ल हुयी है...इस गज़ल पर आपके हाथ चूम लूँ ऐसा जी कर रहा है! बधाई! अभिनन्दन!
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन और मार्गदर्शन पाकर दिल खुश हो गया है.ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.....
मतले का उला आपके मार्गदर्शन अनुसार पुनः निवेदित है -
मैं घर से दूर रहकर भी बहुत कुछ ख़ास रखता हूँ / मैं तुमसे दूर रहकर भी बहुत कुछ ख़ास रखता हूँ/
मैं तुमसे दूर रहकर भी ये दिल उजियास रखता हूँ/
आदरणीय भुवन जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सादर
चलो माना कि दरिया हो, मगर तहजीब मत भूलों |
सुनो मैं भी समंदर से जियादा प्यास रखता हूँ। |
बधाई कबूल करें सर...
आदरणीय समर कबीर जी, मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार. टंकण त्रुटी तबस्सुब को तबस्सुम करता हूँ.सादर
आदरणीय समर कबीर जी, आपका मुखर अनुमोदन मेरे लिए उत्साहवर्धक हुआ करता है, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद नमन
आदरणीय हर्ष जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मनोज भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online