1222---1222---1222-1222 |
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सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
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पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम |
न यूं रैपट लगा मामू कि पहले बात करने का |
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मगज में कोई लोचा है मुहब्बत हो गई तुमको |
तुरत इकरार की खातिर उधर जज्बात करने का |
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धरम के नाम, अक्खा दिन नवें ड्रामें करे नल्ला |
इसे बॉर्डर पे ले जाके, वहीं तैनात करने का |
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उधम करता है जो हलकट भगाने का उसे भीड़ू |
सिटी का पीस वाला फिर अगर हालात करने का |
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कोई शाणा करे लफड़ा, तो दे कण्टाप पे लाफ़ा |
कोई वांदा नहीं साला जिगर इस्पात करने का |
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बहुत येड़ा हुआ बादल, सदाइच झोल करता रे |
अपुन बोला मेरे भगवन नहीं बरसात करने का |
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बुरा टाइम भी हो तेरा मगर सब मामले सुलटा |
अगर लाइफ जरा राप्चिक नवीं औकात करने का |
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Comment
आभार सर
हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मिथिलेश भाई. आपसी चर्चाकई तथ्यों के प्रति स्पष्टता का कारण बनता है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय सौरभ सर, इस विस्तृत चर्चा हेतु हार्दिक आभार. इस चर्चा से कई कई बातें स्पष्ट हुई है. सादर
इस प्रस्तुति के हवाले से जो चर्चा हुई उसका यदि सकारात्मक प्रभाव हुआ है, तथा, विधा विशेष को हास्य-ग़ज़ल का पर्याय बनाने से हम यदि परहेज़ करते हैं तो यह एक स्वागतयोग्य कदम है, आदरणीय राजेश कुमारीजी.
सादर धन्यवाद
मैं आ० सौरभ जी की बहुत शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने हजल क्या बला है इसको सोदाहरण विस्तार में समझकर हमारी आँखें खोल दी |कम से कम इस बात की नसीहत तो मिली की किसी भी बात के पीछे गतानुगति को लोकः वाली कहावत को साकार न करते हुए उस विषय या शब्द की पूर्ण जानकारी ग्रहण करें जो नेट पर भी उपलब्ध है और हम लोग पढना ही नहीं चाहते बस सुनी हुई बातों पर अमल करते चले जाते हैं | मैंने भी मिथिलेश भैया की ग़ज़ल को जो हजल शब्द दिया है वो मैं वापस लेती हूँ और इस बात का ध्यान आगे भी रहेगा|
आदरणीय रवि जी, ये प्रयोग, प्रयास आपको अच्छा लगा, लिखना सार्थक हुआ. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय समर साहब,
ये हम ही नहीं इस मंच का हर जिम्मेवार सक्रिय सदस्य जानता है कि आपकी इस मंच पर क्या अहमीयत है. आप जिस तरह से प्रस्तुत हुई ग़ज़लों पर माकूल सलाह और मशविरा साझा करते हैं, उससे सभी कितना लाभ लेते हैं इसका इल्म हमसभी को खूब है. इसको लेकर आपके लिए हमारे मन में अगाध आदर भी है.
होता ये है, आदरणीय, कि कई बातें एक व्यक्ति के पास समुच्चय में नहीं होतींं. हर कुछ को लेकर पूरा जानकार कोई नहीं होता. सभी मिलजुल कर जानकरियाँ साझा करते हैं और फिर सभी के पास एक-एक कर विशद जानकारी जमा होने लगती है. इसी अवधारणा के तहत ओबीओ पर टिप्पणियाँ होती हैं.
आपको भी मालूम होगा, मुशायरों या नशिस्तों में ’हज़ल’ शब्द का कितना उदार प्रयोग किया जाता है. लोग-बाग बिना इस शब्द को जाने इसका प्रयोग करते हैं. मेरा निवेदन मात्र इतना है कि हास्य-ग़ज़ल का पर्याय ’हज़ल’ न हो. यह शब्द बड़ अटपटा है.
आपकी मौज़ूदग़ी हम सभी के लिए आश्वस्ति का कारण है. आपसे हम बहुत कुछ सीखते हैं आदरणीय समर साहब. आपकी आँख सम्बन्धी विवशता से हम ही नहीं, इस मंच पर सभी जिम्मेवार लोग वाकिफ़ हैं. इसके बावज़ूद आप जिस तरह से अपनी संलग्नता बनाते हैं वह इस मंच केलिए गौरव और सम्मान की बात है. आनेवाले दिनों में आपकी भूमिका महती होती जायेगी, आदरणीय.
सादर
आदरणीय सुनील जी, ये प्रयोग, प्रयास आपको अच्छा लगा, लिखना सार्थक हुआ. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
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