For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुम्बईया मजाहिया ग़ज़ल -- मिथिलेश वामनकर

1222---1222---1222-1222

 

सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का

नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का

 

पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम  

न यूं रैपट लगा मामू कि पहले बात करने का

 

मगज में कोई लोचा है मुहब्बत हो गई तुमको

तुरत इकरार की खातिर उधर जज्बात करने का

 

धरम के नाम, अक्खा दिन नवें ड्रामें करे नल्ला

इसे बॉर्डर पे ले जाके, वहीं तैनात करने का

 

उधम करता है जो हलकट भगाने का उसे भीड़ू

सिटी का पीस वाला फिर अगर हालात करने का

 

कोई शाणा करे लफड़ा, तो दे कण्टाप पे लाफ़ा

कोई वांदा नहीं साला जिगर इस्पात करने का  

 

बहुत येड़ा हुआ बादल, सदाइच झोल करता रे

अपुन बोला मेरे भगवन नहीं बरसात करने का

 

बुरा टाइम भी हो तेरा मगर सब मामले सुलटा

अगर लाइफ जरा राप्चिक नवीं औकात करने का

 

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

Views: 1654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 4:20am

आभार सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2015 at 4:44pm

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय मिथिलेश भाई. आपसी चर्चाकई तथ्यों के प्रति स्पष्टता का कारण बनता है. 

शुभेच्छाएँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 3:40pm

आदरणीय सौरभ सर, इस विस्तृत चर्चा हेतु हार्दिक आभार. इस चर्चा से कई कई बातें स्पष्ट हुई है. सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2015 at 7:57pm

इस प्रस्तुति के हवाले से जो चर्चा हुई उसका यदि सकारात्मक प्रभाव हुआ है, तथा, विधा विशेष को हास्य-ग़ज़ल का पर्याय बनाने से हम यदि परहेज़ करते हैं तो यह एक स्वागतयोग्य कदम है, आदरणीय राजेश कुमारीजी. 

सादर धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2015 at 1:52pm

मैं आ० सौरभ जी की बहुत शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने हजल क्या बला है इसको सोदाहरण विस्तार में समझकर हमारी आँखें खोल दी |कम से कम इस बात की नसीहत तो मिली की किसी भी बात के पीछे गतानुगति को लोकः वाली कहावत को साकार न करते हुए उस विषय या शब्द की पूर्ण जानकारी ग्रहण करें जो नेट पर भी उपलब्ध है और हम लोग पढना ही नहीं चाहते बस सुनी हुई बातों पर अमल करते चले जाते हैं | मैंने भी मिथिलेश भैया की ग़ज़ल को जो हजल शब्द दिया है वो मैं वापस लेती हूँ  और इस बात का ध्यान आगे भी रहेगा|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 1, 2015 at 11:57pm

आदरणीय रवि जी, ये प्रयोग, प्रयास आपको अच्छा लगा, लिखना सार्थक हुआ. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2015 at 11:12pm

आदरणीय समर साहब,

ये हम ही नहीं इस मंच का हर जिम्मेवार सक्रिय सदस्य जानता है कि आपकी इस मंच पर क्या अहमीयत है. आप जिस तरह से प्रस्तुत हुई ग़ज़लों पर माकूल सलाह और मशविरा साझा करते हैं, उससे सभी कितना लाभ लेते हैं इसका इल्म हमसभी को खूब है. इसको लेकर आपके लिए हमारे मन में अगाध आदर भी है.

होता ये है, आदरणीय, कि कई बातें एक व्यक्ति के पास समुच्चय में नहीं होतींं. हर कुछ को लेकर पूरा जानकार कोई नहीं होता. सभी मिलजुल कर जानकरियाँ साझा करते हैं और फिर सभी के पास एक-एक कर विशद जानकारी जमा होने लगती है.  इसी अवधारणा के तहत ओबीओ पर टिप्पणियाँ होती हैं. 

आपको भी मालूम होगा, मुशायरों या नशिस्तों में  ’हज़ल’ शब्द का कितना उदार प्रयोग किया जाता है.  लोग-बाग बिना इस शब्द को जाने इसका प्रयोग करते हैं. मेरा निवेदन मात्र इतना है कि  हास्य-ग़ज़ल का पर्याय ’हज़ल’ न हो. यह शब्द बड़ अटपटा है.

आपकी मौज़ूदग़ी हम सभी के लिए आश्वस्ति का कारण है.  आपसे हम बहुत कुछ सीखते हैं आदरणीय समर साहब. आपकी आँख सम्बन्धी विवशता से हम ही नहीं, इस मंच पर सभी जिम्मेवार लोग वाकिफ़ हैं. इसके बावज़ूद आप जिस तरह से अपनी संलग्नता बनाते हैं वह इस मंच केलिए गौरव और सम्मान की बात है. आनेवाले दिनों में आपकी भूमिका महती होती जायेगी, आदरणीय.

सादर

Comment by Ravi Shukla on September 1, 2015 at 11:11pm
आदरणीय मिथिलेशजी आज आपकी चुहल से भरी हसाती गुदगुदाती ग़ज़ल विधा की रचना पढ़ी । बहुत आनद आया । बधाई स्वीकार करें ।
साथ ही साथ इस पर हुई चर्चा से बहुत कुछ सीखने और जानने को मिला । मंच का उद्देश्य भी सीखना सिखाना है । आपकी रचना के बहाने से आपको समर कबीर जी को सौरभ जी को धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on September 1, 2015 at 10:51pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,मेरी सबसे बड़ी समस्या से आप वाक़िफ़ हैं ,मेरे बच्चे मेरे लिये समर्पित हैं,लेकिन मैं उनकी तालीम में बाधा नहीं डालना चाहता,यही सबब है कि कभी कभी दिल ही दिल में घुट कर रह जाता हूँ,कोई बात कहना चाहता हूँ ,मुबाहिसों में हिस्सा लेना चाहता हूँ लेकिन नहीं ले पाता ।
आपने सही फ़रमाया, ओबीओ की यही बात तो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है,मैं बहुत अच्छे तारीक़े से जानता हूँ कि आप ओबीओ की शान हैं,और इस मंच को अपनी ज्ञान गंगा से सैराब कर रहे हैं,मैं आपके इस अमल की खुले दिल से तारीफ़ करता हूँ और इसे तस्लीम करता हूँ कि आपने 'हज़ल' शब्द पर जो विस्तृत प्रतिक्रिया दी है वो लायक़-ए-तहसीन है,मैं ओबीओ के तमाम सदस्यों की तरफ़ से इसके लिये आपका शुक्रिया अदा करता हूँ,जब भी मुझे मौक़ा मिलता है मैं ओबीओ पर पोस्ट की हुई ग़ज़लों में अपनी छोटी मोटी जानकारियाँ अपनी प्रतिक्रिया में देता रहता हूँ लेकिन आप जानते ही हैं समय बड़ा बलवान है ,उम्मीद है आप एक बार फिर मेरी मजबूरी को समझ गए होंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 1, 2015 at 12:58pm

आदरणीय सुनील जी,  ये प्रयोग, प्रयास आपको अच्छा लगा, लिखना सार्थक हुआ. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सादर अभिवादन आदरणीय। मेरा मानना है कि अमित जी को इस संदर्भ में स्वयं अपना पक्ष रखना चाहिए और अपनी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर .. प्रस्तुत पद के विषम चरण का आपने क्या कर दिया है,…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"अय हय, हय हय, हय हय... क्या ही सुंदर, भावमय रचना प्रस्तुत की है आपने, आदरणीय अशोक भाईजी. मनहरण…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं अपने प्रस्तुत पोस्ट को लेकर बहुत संयत नहीं हो पा रहा था. कारण, उक्त आयोजन के दौरान हुए कुल…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"काफ़िराना (लघुकथा) : प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मनचाही सभी सदस्यों नमन, आदरणीय तिलक कपूर साहब से लेकर भाई अजय गुप्त 'अजेय' सभी के…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपका कहना सही है, पुराने सदस्यों को भी अब सक्रिय हो जाना चाहिए।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"<span;>आदरणीय अजय जी <span;>आपकी अभिव्यक्ति का स्वागत है। यह मंच हमेशा से पारस्परिक…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी साथियों को प्रणाम, आदरणीय सौरभ जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है और इस पर चर्चा आवश्यक है।…"
13 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"विषय बहुत ही चुनकर देते हैं आप आदरणीय योगराज सर। पुराने दिन याद आते हैं इस आयोजन के..."
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service