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बता क्या होगा?-- ग़ज़ल -- (मिथिलेश वामनकर)

2122—1122—1122—22

 

मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा?

इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा?

 

आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों  

इश्क का दरिया बहाने से बता क्या होगा?

 

जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे

इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा?

 

बद-खयालों से भरा आज तलक तेरा दिल

रोज गंगा में नहाने से बता क्या होगा?

 

याद करने से भला कौन मज़ा आता हैं?

अब उन्हें भूल भी जाने से बता क्या होगा?

 

बेवफ़ा की ये जफ़ा की ये खफा की बातें

ये पिटे राग सुनाने से बता क्या होगा?

 

जो गए, लौट के वापिस तो नहीं आ सकते

आँख से धार गिराने से बता क्या होगा?

 

एक दूजे की भला पीठ खुजायें कब तक

इस तरह दाद भी पाने से बता क्या होगा

 

कितने सच्चे हैं मियां खूब खबर दुनिया को

माँ कसम ढेर भी खाने से बता क्या होगा?

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

टीप- ये ग़ज़ल लगभग दस-बारह साल पहले लिखी थी लेकिन किसकी जमीन पर लिखी थी ये याद नहीं है. उसे आज बह्र अनुसार कुछ मिसरों को थोड़ा सा संशोधित कर प्रस्तुत कर रहा हूँ. आज आदरणीय जयनित जी की ग़ज़ल पढ़कर अचानक इसकी याद आई तो पुरानी डायरी खंगाली और ये मिल भी गई.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 1:32am

जो तेरे बस में नहीं आज मना तू कर दे

इस तरह बातें बनाने से बता क्या होगा?

क्या शेर हुआ है ! वाह !

किन्तु ग़ज़ल को मज़ाहिया तो हम किसी तौर पर न कहेंगे .. 

ये  दिल-ए-बेताब को सीने से लगाना होगा.. जैसी ग़ज़ल की याद दिलाती हुई ग़ज़ल हुई है. 

प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद 

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 5, 2015 at 10:20pm

सुन्दर प्रस्तुति,आदरणीय...! :-)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 9:15pm

आदरणीय सौरभ सर, ये ग़ज़ल जब लिखी थी तब इसी मूड से लिखी थी. हाँ यह अवश्य है कि तब ग़ज़ल के कुछ मिसरे बह्र में नहीं थे क्योकि तब मैं लय/धुन गुनगुनाते हुए लिखता था. चूंकि जब से ग़ज़ल लिखी है इसे मजाहिया ही मान रहा हूँ इसलिए यहाँ भी उसी रूप में प्रस्तुति दी है. ये जमीन किस ग़ज़ल की है आपसे मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2015 at 8:02pm

प्रस्तुति पर बाद में आऊँगा, प्रथम दृष्ट्या मुझे इस प्रस्तुति के लिए ’मजाहिया’ शब्द की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई है. 

कृपया ध्यान दे...

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