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बहुत शानदार ग़ज़ल हर शेर ऊँचाई लिए हुए कोई भी कमतर नहीं दिल से दाद हाजिर है दिनेश जी
आरणीय दिनेश जी बहुत खुब, क्या शानदार गज़ल कही है आपने । शेर दर शेर दिली दाद कुबूल करें । हम भी आदरणीय गोपाल नारायण जी की बात से सहमत है ।
त्ताज्जुब हैकि ऐसी गजल को बराए इस्लाह पेश किया गया . भाई कोई बहुत ही गुनी होगा जो हिमाकत करेगा . बहुत बढ़िया.
क़ैद-ए-नफ़स से रूह जो आज़ाद हो मिरी
फिर उसको पैरहन न कोई दूसरा मिले
बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले
वाह बहुत खूब पर दुसरे शेर में रदीफेन का दोष तो नहीं हो रहा है
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