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ग़ज़ल -- कोई रास्ता मिले ...( बराए इस्लाह ) .... दिनेश कुमार

221-2121-1221-212

मंज़िल मिले न मुझको कोई रास्ता मिले
सहरा-ए-ज़िन्दगी में फ़क़त नक्शे पा मिले

मरने से भी ग़ुरेज़ न मुझ जैसे रिन्द को
लेकिन ये हो कि मर के मुझे मयकदा मिले

क़ैद-ए-नफ़स से रूह जो आज़ाद हो मिरी
फिर उसको पैरहन न कोई दूसरा मिले

बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले

पुरपेंच पुरख़तर है ये जीवन की रहगुज़र
अच्छा हो रहनुमा जो अगर आप सा मिले

तूफाँ की ज़द में आ गयी कश्ती हयात की
ढूंढे से भी न मुझको कोई नाखुदा मिले

नासूर बन रहे हैं मेरे ज़ख़्म-ए-दिल सभी
देंखे मुझे भी कब कोई दस्ते शिफ़ा मिले

जोश-ओ-जुनून जीने का कम हो रहा दिनेश
मुझको तो खुद से लड़ने का अब हौसला मिले

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on September 10, 2015 at 10:21pm

बहुत शानदार ग़ज़ल हर शेर ऊँचाई लिए हुए कोई भी कमतर नहीं दिल से दाद हाजिर है दिनेश जी 

Comment by Ravi Shukla on September 10, 2015 at 5:58pm

आरणीय दिनेश जी बहुत खुब, क्‍या शानदार गज़ल कही है आपने । शेर दर शेर दिली दाद कुबूल करें । हम भी आदरणीय गोपाल नारायण जी की बात से सहमत है ।

Comment by ram shiromani pathak on September 10, 2015 at 5:36pm
बढ़िया कहन आदरणीय ।।हार्दिक बधाई
Comment by दिनेश कुमार on September 10, 2015 at 5:28pm
हौसला अफ्ज़ाई के लिए शुक्रिया आ. सुशील सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on September 10, 2015 at 5:27pm
हौसला अफ्ज़ाई के लिए शुक्रिया आ. मिथिलेश भाई जी। आप के शब्दों ने उत्साह बढ़ाया।
Comment by दिनेश कुमार on September 10, 2015 at 5:25pm
हौसला अफ्ज़ाई के लिए शुक्रिया आ. शिज्जू भाई जी। आप के उत्साहवर्धक शब्द मेरे लिए काफी मायने रखते हैं।
Comment by दिनेश कुमार on September 10, 2015 at 5:23pm
हौसला अफ्ज़ाई के लिए शुक्रिया आ. मनोज कुमार अहसास साहब .
Comment by दिनेश कुमार on September 10, 2015 at 5:22pm
हौसला अफ्ज़ाई के लिए शुक्रिया आ. राहुल जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2015 at 8:29pm

त्ताज्जुब हैकि ऐसी गजल  को बराए इस्लाह पेश किया गया . भाई कोई बहुत ही  गुनी होगा जो हिमाकत करेगा . बहुत बढ़िया.

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 9, 2015 at 6:31pm

क़ैद-ए-नफ़स से रूह जो आज़ाद हो मिरी
फिर उसको पैरहन न कोई दूसरा मिले

बेचैन हूँ मैं गर्मी-ए-अहसास-ए-हिज्र से
अब तो तुम्हारे प्यार की ताज़ा हवा मिले

वाह बहुत खूब पर दुसरे शेर में रदीफेन का दोष तो नहीं हो रहा है

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