2122 2122 212
खुशनुमाँ से अवसरों के वास्ते
आसमाँ तो हो परों के वास्ते
मै तो आईना लिये फिरता हूँ अब
आइनों से पत्थरों के वास्ते
अब तो दीवारें गिरायें यार हम
गिर रहे हैं उन घरों के वास्ते
थोड़ी अकड़न भी अता करना ख़ुदा
बे सबब झुकते सरों के वास्ते
कुछ बहाने और हैं, ले जाइये
आदतन से कायरों के वास्ते
मैं हक़ीकत बाँध के लाया हूँ आज
कुछ छिपे अंदर डरों के वास्ते
बस दुआ ही हाथों में अपनें बची
राह भूले रहबरों के वास्ते
एक पीपल मैं लगा आया तो हूँ
मौन साधे खँडहरों के वास्ते
जुगनुओं में आज ये चर्चा हुआ
वो जलेंगे तम - दरों के वास्ते
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
bahoot khoob
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीय कृष्णा भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया , आपको दो शे र पसंद आये तो गज़ल कहना सफल हुआ । आपका आभार ।
आदरणीय अजय भाई , सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय काफिया दो रचना कारों के एक ही रहने से भी क्या फर्क पड़ता है , काफिया रदीफ कर किसी एक का एकाधिकार तो नही होता , आप बेख़टके अपनी ग़ज़ल कहें , आप की गज़ल का इंतिज़ार रहेगा ।
आदरनीय श्याम भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।
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