2122 2122 2122
एक दिन आ कर तुम्हें भी हम हँसायें
यदि हमारे बहते आँसू मान जायें
क्यों समय केवल उदासी बांटता है ?
क्या समय के पास बस हैं वेदनायें
जानकारी ठीक है ,पर ये भी सच है
ज्ञान की अति खा रही है भावनायें
इस तरफ है पेट की ऐंठन सदी से
उस तरफ़ है भूख पर होतीं सभायें
बात में बारूद शामिल है उधर की
हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें ?
अब धरा को छू रहा है सर हमारा
और कितना, बोलिये हम सर झुकायें ?
लूट, मक्कारी छपी है पृष्ठों में सब
अब जगह पातीं नहीं जातक कथायें
मित्रता की बातें वो भी कर रहे हैं
वो जिन्हें अवसर मिले तो काट खायें
अब कहाँ सम्भावना ढूँढे बताओ ?
ईद दीवाली सभी मिल जुल मनायें
आसमानों की अगर इच्छा बची है
पंख तौलें, और थोड़ा फड़फड़ायें
जब अँधेरा ही अँधेरा है इधर तो
क्यों न दीपक राग ही हम गुनगुनायें
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरनीय सुलभ भाई ,
आपने सही कहा है , और मै भी ये जानता और मानता हूँ कि शांति शब्द वहाँ बिलकुल सही है , एक और शायर का मुझे फोन भी आया था कि शेर सही है , कुछ सुधार की ज़रूरत नही है , अब तो आपने भी मुहर लगा दी है , अब कोई सुधार नहीं करूंगा । दर असल अपनी ही गज़ल पर मै खुद को सही साबित करने के लिये तर्क देना को सीखने सिखाने की भावना के खिलाफ मानता हूँ , इसीलिये मै चाहता था कि कोई और शायर कहे कि ये सही है , और आपने कह दिया ।
मेरे खयाल से शांति को उर्दू लिपि मे चार हर्फी ( श आ न ति ) मानते हैं , इसी लिये आ. समर भाई अम्न कराना चाहते हैं , मै जानता नही हूँ बस मेरा ये खयाल है ।
गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ
आदरणीय !
एक सर्वत्र प्रचलित अभ्यास है - अवधि को अवधी पढ़ने का, शांति को शान्ती पढ़ने का कहीं ऐसा ही तो नहीं है जिस कारण आदरणीय समर कबीर साहब को लय बाधित लग रही हो !
समर कबीर साहब ने भी अपने संशोधन में ‘हम कबूतर अम्न के कैसे उड़ायें’ का प्रस्ताव किया है, इसमें उनको कबूतर पर कोई आपत्ति नहीं है।
जहां तय लय की बात है शांति की जगह समान मात्रा भार का ‘अम्न’ रख देने से लय कैसे सुधर जाएगी मैं नहीं समझ पा रहा हूं।
आपने जो संशोधन प्रस्तुत किया है, मुझे नहीं लगता वह मूल शेर से बेहतर है। मेरे खयाल से तो वह बात को कमजोर ही करेगा।
आदरणय गिरिराज जी !
‘हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें’ इसमें कमी क्या है - मेरी समझ में तो नहीं आ रहा।
रवी शुक्ला जी ने एकवचन बहुवचन की बात उठायी है तो मैं सबका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा -
आप कहते हैं - ‘सड़क पर दस गाडि़याँ खड़ी हैं’ पर इसी जगह अगर आप कबूतर या बंदर या हाथी या आदमी के विषय में कहना चाह रहे हैं तो क्या कहेंगे ?
सड़क पर दस बन्दर खड़े थे या सड़क पर दस आदमी खड़े थे या सड़क पर दस कबूतर बैठे थे -
कबूतर यहाँ बहुवचन के रूप में ही प्रयोग हो रहा है और प्रयोग पूर्णतः शुुद्ध है।
आदरणीय रवि भाई , आपने सही है , ये इस मंच की ख़ासियत है , चर्चा सार्थक रहे ताकि रचना कार और पाठक दोनो चर्चा से कुछ सीख पायें । आपका आभार , इस चर्चा मे शामिल होने के लिये ।
आदरणीय समर भाई , आपका कहना वाजिब है , आसमान शब्द फारसी है , लेकिन ये बात भी सच है कि उतना ही प्रचलित और पढे अनपढ़े हिन्दी भाषियों के द्वारा जाना और स्वीकारा गया शब्द है , जैसे एक शब्द और याद आ राहा है - दर्द , बहुत कम लोग जानते होंगे कि ये शब्द हिन्दी नही है , इसी लिये मै आसमान का उपयोग सही समझा । फिर भी आपकी बात सही है । ये मेरी इच्छा है थी कि मै वहाँ हिन्दी शब्द लूँ , मै किसी ऐसे विषय पर बहस नही करना चाहता जिसका अंत न हो । मै आपकी सलाह पर सोच रहा हूँ , सलाह के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आअदरणीय दिनेश भाई, हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
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