For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खंडित प्रतिमा (लघु कथा ‘राज’)

राजमहल का वो बड़ा सा हॉल  खचाखच भरा हुआ था| सभी शिल्पकार अपनी अपनी ढकी हुई मूर्तियों को  एक पंक्ति में व्यवस्थित करने में लगे थे | थोड़ी देर में ही राजा मानसिंह मूर्तियों का अनावरण शुरू करने वाले थे| आज का विषय ‘सिर पर घड़ा लिए एक देहाती महिला’ था |

इस बार एक खास बात ये थी की पड़ोसी देश के राजा जो राजा  मानसिंह के मेहमान थे मूर्ति का चुनाव करने वाले थे| सभी आपस में फुसफुसा रहे थे की क्या इस बार भी हर बार की तरह मशहूर शिल्पकार पुष्कर सिंह ही ले जायेंगे ईनाम|

भीड़ को चीर कर आगे बढ़कर आई पत्नी की फुसफुसाहट ज्योति सिंह के कानों में पड़ी”देखा कितनी बार हम दोनों मिन्नतें करने गए तुम्हारे बाबा और माँ से कि इस बार अपनी मूर्ति ना भेजें पर उन्हें बेटे की परवाह कहाँ देखो कितने अकड़कर अपनी मूर्ति रखने में लगे हुए हैं हर एक की जबान पर पुष्कर ही पुष्कर हो रहा है अब तो मिल लिया तुम्हे ईनाम” |

“कोई बात नहीं इस बार हमने भी मेहनत  की है और तू देखती जा इस बार क्या चमत्कार होता है ईनाम तो हमे ही मिलेगा” पुष्कर  के बेटे ज्योति सिंह ने आँख दबाकर दबी आवाज में अपनी पत्नी से कहा |

फिर आई वो घड़ी एक के बाद एक सबकी मूर्तियों का अनावरण हो रहा था तालियों से हॉल गूँज रहा था ज्योति सिंह की मूर्ति  इस बार सबसे बेहतर थी राजा मानसिंह ने देखा तो उनकी  आँखें भी उस पर पलभर को टिकी रह गई |

फिर आया पुष्कर की मूर्ति का नंबर सब की साँसे अटकी हुई थी सभी को पता था हर बार की तरह पुष्कर की मूर्ति में कुछ न कुछ खास निकलेगा जैसे ही उसका पर्दा उतारा सब दंग रह गए मूर्ति खंडित थी एक हाथ टूटा हुआ था एक हाथ से ही उस नारी ने घड़ा संभाल रखा था |

“ये क्या पुष्कर सिंह ये मूर्ति खंडित क्यूँ है?”राजा मानसिंह ने गरजती आवाज में कहा | “महाराज ये एक ऐसी नारी का प्रतिमान है जिसका दायाँ हाथ टूट चूका है फिर भी वो अपने होंसले के बल पर अपना व अपने परिवार का पालन पोषण  कर रही है” अपने बेटे ज्योति की और देखते हुए पुष्कर ने कहा|

इतना सुनते ही मेहमान राजा ने पुष्कर की पीठ थपथपाई और विजेता घोषित कर दिया तथा वो मूर्ति अपने देश ले जाने के लिए राजा मानसिंह से गुजारिश की |

लौटते हुए भीड़ में अचानक अपने बेटे के काँधे पर हाथ रख कर पुष्कर ने कहा “इस बार यदि तुम ये हिमाकत न करते तो निःसंदेह तुम विजेता घोषित होते ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ तुम्हारी करनी ही मेरी मूर्ति को ख़ास बना गई... हमेशा याद रखना -आगे बढ़ना चाहिए पर दूसरे के सिर पर पैर रख कर नहीं”

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 15, 2015 at 3:19pm
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी। दिली दाद कुबूल करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:29pm

आदरणीया राजेश दीदी बहुत ही शानदार लघुकथा हुई है. आदरणीय उस्मानी जी ने बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया दी है कि लघु कथा का कथानक स्वयं अपना आकार ले लेता है, निसंदेह ये बात आपकी लघुकथा पर लागू होती है. इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 4:51pm

आ० गिरिराज जी,आपको ये लघु कथा लाजबाब लगी मेरा लिखना सार्थक हो गया लेखक को अपने लिखे पर संतुष्टि होती है यदि एक जागरूक पाठक की ये प्रतिक्रिया हो तो |आपका दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2015 at 1:14pm

मै ज़ियादा कुछ कथा के विषय मे नही जानता पर आपकी कथा लाजवाब लगी ! आदरनीया राजेश जी दिली बधाइयाँ आपको ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 10:37am

आ० डॉ० आशुतोष जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई प्रेरणादायक लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से प्रभूत आभार आपका .  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2015 at 10:32am

आदरणीया राजेश जी / अद्भुत सन्देश देती सार्थक लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई क़ुबूल करें ...युवा पीढी के साथ सभी को इससे सीख लेना चाहिए ..एक बार पुनः बढ़ाए के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 10:03am

आ० शेख़ शहजाद जी,आपकी प्रतिक्रिया मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान करने के इलावा मेरी इस लघु कथा के प्रति आश्वस्तता में भी इजाफ़ा कर रही है अभिभूत हूँ आपका दिल से बहुत- बहुत आभार | 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2015 at 7:34am
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आज आपकी यह लघु कथा तीन बार पढ़ी, पुनः पढ़ने का मन करता है। प्रत्येक पंक्ति व संवाद का सृजन परिश्रम से हुआ है। बहुत अच्छा लगा।लघु कथा का कथानक स्वयं अपना आकार ले लेता है, ऐसा गुरूजन कहते हैं, वह यहां सिद्ध हो गया है। हम नये रचनाकार बहुत कुछ इस लघु कथा से सीख सकते हैं।बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2015 at 1:04pm

मनोज कुमार जी,आपने इस कथा का जिस गहनता से विश्लेष्ण किया है वो मेरे लिखे को सार्थकता प्रदान कर रहा है यदि सही कलाकार की दृष्टि होती है तो सुना है वो मुर्दे में भी प्राण डाल देता है फिर यहाँ तो सिर्फ एक टूटे हाथ की बात है आपका दिल से बहुत- बहुत आभार | 

Comment by मनोज अहसास on October 2, 2015 at 12:44pm
नमस्कार
कथा मे कई बातें दिखाई दी है
सामाजिक तानेबाने का बिखराव
पिता पुत्र की प्रतिस्पर्धा
कला की गहनता
और कला के प्रस्तुतीकरण की विशिष्टता
जिसने टूटे हुए हाथ मे जीत की शक्ति भर दी
कथा पाठक को बांधने मे सफल हुई है
मैं आपको हार्दिक बधाई देता हूँ
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service