प्रेम दीवानी होती है.....
सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
मत उलझो आडम्बर में यदि हो इंसा,
इंसा की खुद आत्म कहानी होती है.
धर्म कर्म आहार भुनाने में उसको,
सपनों की दीवार गिरानी होती है.
मत उगलो तुम जह्र आग तूफान यहां,
जीवन पानीदार सयानी होती है.
बाल न बांका तुम मेरा कर पाओगे,
सत्य-खुदा से आंख मिलानी होती है.
मत रोना संसार रुलाता है सबको,
हंस भी मत जब प्रेम दीवानी होती है.
मीरा राधा कबिरा तुलसी दास तकी,
सबके सब बेज़ार बयानी होती है.
‘सत्यम’ के सिर पर चढ़कर मत वार करो,
खुद प्रभु को भी लाज बचानी होती है.
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 उसमानी भाई व भंडारी भाई जी आप दोनो का तहेदिल से शुक्रिया. सादर
आ0 कांता रॉयजी, आपका तहेदिल शुक्रिया. सादर
आदरणीय केवल भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
वाह !!! बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीय केवल जी। बधाई।
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