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व्यंग्य कविता -"एक बूंद पानी की कीमत "

बिन पानी के अभी से मच रहा,सब ओर हाहाकार।
मई-जून में आयेगा मजा,जब मुंह सूखे लार ।।
नदी,कुंये,ताल का,हो जायगा बुरा हाल ।
पानी के लिये मारामारी,होगी अब की साल ।।
खूब धो रहे घर आंगन, और कर रहे बरबाद पानी।
आटा सानने नहीं मिलेगा,खूब कर लो मनमानी ।।
नहाओ-नहाओ सांझ सबेरे,पर कभी आगे का सोचा ।
गमछा गीला करके बदन पर,लगाना पड़ेगा पोंछा ।।
जो नहा ना पायें बहुत दिनों तक,तो आयेगी ऐसी बास।
कहीं मर गया चूहा या, कहीं सड़ गयी लाश ।।
पटक -पटक के कसेंड़ी बर्तन, होगी खूब लड़ाई ।
इधर खड़ी पंडितायन होगी,उधर मंगू की लुगाई ।।
अभी से बचा लो पानी भैया,इस में सब की भलाई ।
वरना बाद में ना कहना,पहले ये बात ना बताई ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on October 25, 2015 at 2:18pm
बहुत -बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा जी । आपको पसंद आई रचना मेरे लिये बहुत खुशी की बात है । क्योंकि थोड़ा संकोच हो रहा था भेजने में इतने बड़े मंच का मान कम ना कर दे ये व्यंग्य ।
Comment by pratibha pande on October 25, 2015 at 1:59pm

खूब धो रहे घर आंगन, और कर रहे बरबाद पानी।
आटा सानने नहीं मिलेगा,खूब कर लो मनमानी ।।
नहाओ-नहाओ सांझ सबेरे,पर कभी आगे का सोचा ।
गमछा गीला करके बदन पर,लगाना पड़ेगा पोंछा ।।
जो नहा ना पायें बहुत दिनों तक,तो आयेगी ऐसी बास।
कहीं मर गया चूहा या, कहीं सड़ गयी लाश ।।        वाह  राहिला जी क्या उद्गार हैं  ,मज़ा आया पढ़कर  बधाई 

Comment by Rahila on October 25, 2015 at 11:06am
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी । आपकी उम्मीदों पर मैं खरे उतरने की कोशिश करूंगी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2015 at 9:28am
वाह, मज़ा आ गया।कड़वी सच्चाई व्यंग्य रूप में कहकर एक समसामयिक सदाबहार कविता के सृजन के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राहिला साहिबा। मुझे आपकी तमाम काव्य रचनाएँ बहुत मज़ेदार होने के साथ साथ शिक्षाप्रद और प्रेरक लगती हैं। उम्मीद है बहुत सी रचनाएँ यहाँ शीघ्र ही पढ़ने को मिलेंगी।

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