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आ० मनन कुमार जी ,प्रयास अच्छा है किन्तु कुछ मिसरे बेबह्र हो रहे हैं जैसे ---
आरजू थी वे बुला लेते कभी
रुख भी तब्दील होगा, मानिये
हो गया हासिल समझ ताज अब तो
ताज को लोरी सुनाने लगा हूँ।------इसका भाव समझ नहीं पा रही हूँ ....ताज को लोरियाँ सुनाकर सुलाना है क्या ? :-))))
वैसे मनन जी इस बह्र का नाम क्या है ? मैं समझ नहीं पा रही हूँ . आपको हार्दिक बधाई
आदरणीय मनन भाई , गज़ल अच्छी कही है , दिली बधाइयाँ आपको । बाक़ी आदरणीय रवि भाई कह ही चुके हैं , और आपने मिसरे को सुधार भी लिया है । हार्दिक बधाई आपको ।
आदरणीय मनन जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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