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तुम इस ही बहाने आओ भी

16 रुक्नी ग़ज़ल
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हम अब भी साँसें खींच रहे; कुछ और सितम तुम ढ़ाओ भी।
दीदार तो होगा कम से कम; तुम इस ही बहाने आओ भी।।

कल सुब्ह चले जाना ये शब, तूफ़ान भरी को बीतने दो।
बादल झरते हैं आँखों से, बरसात है तुम रुक जाओ भी।

अरमान भरे दिल की दुनिया, उजड़ी है अभी बर्बाद हुई।
बस बाकी है दीवार ज़रा, माटी में इसको मिलाओ भी।।

तैयार ज़रा कर दो मुझको, बिखरा बिखरा हूँ ठीक नहीं।
शृंगार अधूरा है मेरा, कुछ मोती मुझपे चढ़ाओ भी।।

कोई क़र्ज़ न बाक़ी रह जाये, अब लेन देन अंतिम कर लो।
उपहार दिये थे जो तुमको, वो फ़ूल हमें लौटाओ भी।।


मौलिक अप्रकाशित

Views: 667

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 9:42am
धन्यवाद अनुज आमोद
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 10:23pm
खूबसूरत बधाई
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2015 at 4:00pm
सादर नमस्कार मित्र मनोज जी
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2015 at 3:59pm
आदरणीय मोहन सर सादर प्रणाम्।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 5, 2015 at 3:58pm
सादर धन्यवाद आदरणीय आबिद भाई
Comment by मनोज अहसास on November 5, 2015 at 6:08am
नमस्कार सर
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
सादर
Comment by मोहन बेगोवाल on November 4, 2015 at 11:07pm

आदरनीय पंकज जी , बहुत बढ़िया  ग़ज़ल के लिए बधाई हो 

Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 8:44pm

हार्दिक वधाई आदरणीय!

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 4, 2015 at 5:39pm
आदरणीय लक्षमण भाई जी सादर अभिवदान
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2015 at 11:32am

दीदार तो होगा कम से कम; तुम इस ही बहाने आओ भी...बहुत खूब ...आ० पंकज भाई , हार्दिक बधाई l

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