221 2121 1221 212 |
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होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है |
सीने में उनके आग लगाने की बात है |
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झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट कर |
कहते है सिर्फ बाग़ सजाने की बात है |
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क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी? |
ये परबतों पे दाल गलाने की बात है |
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अहले-वतन के काफिले होंगे गली-गली |
बस इक दबा सवाल उठाने की बात है |
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फाकों में देखना है अगर मस्तियाँ तुम्हे |
रोटी की गोल ढपली बजाने की बात है |
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जब तक चले, सफ़र में रहे, तो ये जिंदगी |
ठहरी तो समझो मौत के आने बात है |
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खुद ही उतर के आएँगें तारे जमीन पर |
बस आसमां से चाँद हटाने की बात है |
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कश्मीर पर हुजूर खुलेआम कह दिया |
घर की अदावतें क्या बताने की बात है? |
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‘मिथिलेश’ मंच पे है मगर बोलता नहीं |
परदा यहीं पे आज गिराने की बात है |
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Comment
आ० मिथिलेश जी आपकी गजल का प्रवाह देखते ही बनता है . राजेश दीदी ने जो बात कही उससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ . आपको बधाई .
वाह्ह्ह वाह्ह्ह्हह मिथिलेश भैया ,इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ करें शब्द ही कम पड जायेंगे हर शेर उम्दा प्रभाव शाली हुआ फिर भी जो बहुत ही ज्यादा पसंद आया उन्हें कोट करना चाहूँगी --
झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट कर |
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कहते है सिर्फ बाग़ सजाने की बात है |
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क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी? |
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ये परबतों पे दाल गलाने की बात है
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होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है |
सीने में उनके आग लगाने की बात है |
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झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट कर |
कहते है सिर्फ बाग़ सजाने की बात है |
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क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी? |
ये परबतों पे दाल गलाने की बात है |
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अहले-वतन के काफिले होंगे गली-गली |
बस इक दबा सवाल उठाने की बात है |
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फाकों में देखना है अगर मस्तियाँ तुम्हे |
रोटी की गोल ढपली बजाने की बात है |
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जब तक चले, सफ़र में रहे, तो ये जिंदगी |
ठहरी तो समझो मौत के आने बात है |
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खुद ही उतर के आएँगें तारे जमीन पर |
बस आसमां से चाँद हटाने की बात है |
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कश्मीर पर हुजूर खुलेआम कह दिया |
घर की अदावतें क्या बताने की बात है? |
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‘मिथिलेश’ मंच पे है मगर बोलता नहीं |
परदा यहीं पे आज गिराने की बात है |
पूरी की पूरी ग़ज़ल सार्थक हुई है आदरणीय मिथिलेश जी, वधाई आपको सुन्दर प्रस्तुति के लिए! |
आदरणीय कल्पनाजी ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकार बहुत ख़ुशी हुई. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय बैजनाथ जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नमन
आदरणीय मनोज भाई जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय मंसूरी जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय श्याम नरेन् जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
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