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"सारा जीवन बैल की तरह कमाया।अपनी और अपने बच्चों की तरफ न देखा,न ही कोई भविष्य की योजना कर पाए।",झिड़कते हुए उसकी पत्नी ने बोला।
और वह उसकी तरफ एक बार देख ही पाया उत्तर में।
"ऐसे क्या घूर रहे हो मुझे ?कुछ गलत नहीं बोली हूँ।"
"हूँsss।मैंने तो....."
"क्या मैंने तो?कोई सगे भाइयों के लिए कुछ नहीं करता और तुमने तो अब तक का अपना जीवन सौतेलों के लिए जिया।उनको तो बना दिया और ख़ुद.....।"
"क्या बोले जा रही हो भाग्यवान....?"
"आज तो कोई सगा किसी का नहीं,तो सौतेला क्या होगा?अपनी सारी कमाई और उम्र तो उनको पालने-पढ़ाने में लगा दी।अब अपने बच्चों के लिए...?"
"अब बस भी करो।पिताजी के जाने के बाद मेरी जिंदगी के यही तो मायने थे।"
मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:30am
रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति ही उसको सार्थक बना देती है।आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों से और ऊर्जा मिलती है।उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार वन्दनीया Kanta Roy दी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:28am
आभार आदरणीया अनीता जैन जी रचना पर उपस्थित होकर यथार्थ को साँझा करने एवम् प्रोत्साहन के लिए।
Comment by kanta roy on December 1, 2015 at 10:52am
बहुत ही सुंदर जिम्मेदारी भरी यह जिंदगी के मायने हुए है आपके आदरणीय सतविंदर जी । बधाई !
Comment by ANITA JAIN on November 30, 2015 at 6:59pm
आदरणीय बहुत अच्छा...अकसर ज़िम्मेदादी निभाने वाला ऐसी अन देखी कर जाता है |अपने खाली हाथ ही रह जाते हैं अपनों की जीवन इच्छा पूर्ति में |
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 7:39pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय Tejveer Singh जी
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 7:38pm
प्रयास की सराहना के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया Savitamishra जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 28, 2015 at 7:25pm

सुन्दर लघुकथा!हार्दिक बधाई!

Comment by savitamishra on November 28, 2015 at 4:18pm

अच्छी कथा .....बधाई 

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