For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

द्वार खोला तो महीनों बाद अमित को सामने पाकर वह चौंक उठी।
" आप ?"
" हाँ मैं, सोनिया को छोड़ आया हूँ। अब तुम्हारी कीमत का अहसास हो गया है मुझे ,सॉरी मेघा, अब घर लौट आया हूँ, प्लीज़ माफ़ कर दो मुझे "
" बेशक कर दूँगी ,पर एक बात का ईमानदारी से जवाब दीजिये ,अगर मैं आपको छोड़कर किसी और के पास चली गई होती,तो क्या मुझे सहर्ष स्वीकार कर लेते ? "
उसने असमंजस में मेघा की ओर देखा फिर दृष्टि झुकाते हुए बोला
" नहीं "
वेदना व हिकारत के मिले जुले भाव से पति के झुके हुए चेहरे को उसने देखा और द्वार बन्द कर लिया।

( मौलिक एवम अप्रकाशित )

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 7:53am
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी रचना पर आपकी उपस्थिति व सुखद प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार।
Comment by pratibha pande on December 3, 2015 at 11:52am

  स्त्री की क्षमाशीलता और सहनशीलता की भी एक सीमा है , आपकी रचना की नायिका ने ये बात बड़े ही दमदार तरीके से बता दी है , हार्दिक बधाई इस सशक्त रचना पर आदरणीया  ज्योत्स्ना जी  

Comment by jyotsna Kapil on December 3, 2015 at 6:26am
आदरणीय सुशिल सरना जी आपकी सहृदय प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार।
Comment by jyotsna Kapil on December 3, 2015 at 6:25am
आदरणीय नीता कसर दी आपकी प्रेरक टिप्पणी हेतु अन्तस् से आभारी हूँ।
Comment by jyotsna Kapil on December 3, 2015 at 6:24am
आदरणीय नादिर खान जी रचना की सराहना करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए आपकी बाहय शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by jyotsna Kapil on December 3, 2015 at 6:23am
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आपने रचना को समय दिया व सराहा भी इस हेतु आपकी अति आभारी हूँ।
Comment by jyotsna Kapil on December 3, 2015 at 6:21am
आदरणीय शेख उस्मानी भाई आपकी प्रेरणादायक टिप्पणी के लिए हृदयतल से आभारी हूँ।
Comment by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 7:54pm

आदरणीया ज्योत्स्ना जी वर्तमान में घटित हो रही पारस्परिक संबंधों को बहुत ही संजीदगी से प्रस्तुत किया है। इस सार्थक और संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Nita Kasar on December 1, 2015 at 6:55pm
जीवन में आये फ़ासले ख़त्म करने के लिये बड़ी कुशलता ईमानदारी की ज़रूरत होती है अपने अहं को दरकिनार रख कर सामंजस्य के साथ रिश्ते लंबी दूरी तय करने का साहस रखते है वरना यही परिणाम सामने आता है ।संवेदनशील कथा के लिये बधाई आद०जयोत्सना जी
Comment by नादिर ख़ान on December 1, 2015 at 6:21pm

आदरनीय ज्योत्सना जी दिल को छूती उत्तम रचना के लिये बधाई ..... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service