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बिटिया के छोटे-छोटे बच्चे,दो वक़्त की रोटी जुटाने की मशक्कत,और बेटी की जान पर मंडराता खतरा देखकर परमेसर सिहर उठा।उसने अपनी एक किडनी देकर उसके जीवन को बचाने का संकल्प कर लिया।
" तुम तो पहले ही अपनी एक किडनी निकलवा चुके हो,तो अब क्या मजाक करने आये थे यहाँ ?" डॉक्टर ने रुष्ट होकर कहा।
" जे का बोल रै हैं डागदर साब,हम भला काहे अपनी किटनी निकलवाएंगे।
ऊ तो हमार बिटिया की जान पर बन आई है।छोटे-2 लरिका हैं ऊ के सो हमन नै सोची की एक उका दे दै।"
" पर तुम्हारी तो अब एक ही किडनी है,और ये देखो ऑपरेशन के निशान भी हैं "
" अरे ऊ कौनौ किटनी न निकलवाई हमने।ऊ तो मुला नसबन्दी का आपरेसन हुआ था।ऊ जा साल सूखा पड़ा था,तबहीं एक सिविर लगा था।सबका मुफत में नसबन्दी का आपरेसन करके हज्जार रुपैया दै रै थे।तबहिं हमन नै करवा के हज्जार रुपया ....." कहते कहते वह रुक गया।मुफ़्त के शिविर में ऑपरेशन के पीछे का सच अब उसे समझ में आ गया था।
( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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Comment by Rahila on December 5, 2015 at 11:43am
मुफ़्त का चक्कर बुरा ही होता है क्योंकि आज के जमाने में सब को फायदा चाहिये । सेवा भाव से कोई काम करने के जमाने लद गये । बहुत अच्छी रचना आदरणीया ज्योत्सना दी! बहुत बधाई आपको । सादर ।
Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:33pm
आपकी सकारात्मक टिप्पणी उत्साह को कई गुना बढ़ा देती है आदरणीय कांता दी।
Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:32pm
सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय दिग्विजय जी।
Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:31pm
सार्थक प्रतिक्रिया देने हेतु आपकी तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय उस्मानी भाई।
Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:29pm
आदरणीय नादिर खान जी रचना को समय देने व् प्रेरक टिप्पणी हेतु दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ आपका।
Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 6:32pm

मुफ्त शिविर का सच , बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है आपकी आदरणीया ज्योत्सना जी।  बधाई !

Comment by DIGVIJAY on December 4, 2015 at 5:48pm

आदरणीयाअच्छी लघुकथा कि बधाई स्वीकारे । कुछ भी कहने को नहीं रहा हैं सब कुछ उस्मानी साहब और नादिर जी द्वारा कह दिया गया है ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2015 at 4:32pm
ऐसा नहीं है कि सभी चिकित्सा शिविर और सभी समाज सेवी संस्थायें ग़लत कार्य में लिप्त हैं, लेकिन आपराधिक वातावरण में कुछ एक लोग ऐसा भी करते पकड़े गए हैं ,अतः जन-जागरूकता के लिए इस तरह का सार्थक सृजन निश्चित रूप से बधाई का पात्र है। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया ज्योत्सना कपिल जी।
Comment by नादिर ख़ान on December 4, 2015 at 3:48pm

आदरणीया ज्योत्सना जी सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई ऐसे शिविरों की एक सच्चाई यह भी है अक्सर इन शिविरों में जन कल्याण कम और दिखावा, लालच तथा टारगेट पूरा करने या रिकॉर्ड बनाने का काम ज्यादा होता है, ऐसे शिविर सिर्फ आंकड़ों में ही कामयाबी दर्शाते है, जबकि सच्चाई कुछ और होती है । साहित्यकार समाज का आईना होता है उसे पूरा हक़ है सच्चाई बयां करने का......
पुनः सुन्दर लघुकथा के लिए आपको बधाई। ...

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