For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो घड़ी करके तो सुहबत देखना (ग़ज़ल)

2122 2122 212

लाएगी इक दिन क़यामत,देखना..
जानलेवा है सियासत, देखना..

काम मुश्किल है बहुत संसार में,
दुसरे इंसाँ की बरकत देखना..

देख लेना खूँ-पसीना भी, अगर
आलिशाँ कोई इमारत देखना..

झाँक कर मेरी निगाहों में कभी,
आपसे कितनी है चाहत, देखना..

देखना हो गर खुदा का अक्स,तो
छोटे बच्चे की शरारत देखना..

'जय' न सिखला दे मुहब्बत,फिर कहो
दो घड़ी करके तो सुहबत देखना..
______________________________
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:06pm

आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:04pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 1:51pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब। दाद कुबूल कीजिए।

Comment by Samar kabeer on December 8, 2015 at 2:21pm
कृपया मेरी प्रतिक्रिया एक बार ध्यान से पढ़ें।
Comment by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 1:04pm

देखना हो गर खुदा का अक्स,तो
छोटे बच्चे की शरारत देखना..

वाह क्या बात है बहुत ही मासूमियत है इस शे'र में। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 8, 2015 at 12:35pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आपलोगों का..
आ. लक्ष्मण जी एवं मिथिलेश जी।

कितनी भी सावधानी रखिये,टंकण त्रुटियाँ हो ही जाती हैं।
पुनः धन्यवाद,सादर।।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2015 at 11:41am

आदरणीय जयनित जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शे'र-दर-शे'र दाद कुबूल फरमाएं. इस मिसरे को सीधा कह सकते है-

//कोई आलीशान इमारत देखना//

दुसरे=> दूसरे 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2015 at 11:17am

आ0 भाई जयनित जी सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई । दूसरे असआर में दूसरे की जगह दुसरे हो गया है इस टंगण त्रुटि को ठीक कर ले । पुनः बधाई ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2015 at 10:34pm
आदरणीय समर कबीर साहब,सर्वप्रथम ग़ज़ल की सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका।
ग़ज़ल पोस्ट करने के बाद से ही ये शब्द मुझे खटक रहा था.. पर पूर्णतया आश्वस्त न होने की वजह से मैं असमंजस की स्थिति में था.. बहुत आभारी हूँ आपका।।
वैसे इस शेर के बारे में क्या ख़याल है आपका?

"देख लेना खूँ-पसीना भी,अगर
कोई आलीशाँ इमारत देखना".. सादर।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2015 at 10:27pm
आदरणीय अजय जी, ग़ज़ल पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service