2122 2122 212
लाएगी इक दिन क़यामत,देखना..
जानलेवा है सियासत, देखना..
काम मुश्किल है बहुत संसार में,
दुसरे इंसाँ की बरकत देखना..
देख लेना खूँ-पसीना भी, अगर
आलिशाँ कोई इमारत देखना..
झाँक कर मेरी निगाहों में कभी,
आपसे कितनी है चाहत, देखना..
देखना हो गर खुदा का अक्स,तो
छोटे बच्चे की शरारत देखना..
'जय' न सिखला दे मुहब्बत,फिर कहो
दो घड़ी करके तो सुहबत देखना..
______________________________
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।।
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब। दाद कुबूल कीजिए।
देखना हो गर खुदा का अक्स,तो
छोटे बच्चे की शरारत देखना..
वाह क्या बात है बहुत ही मासूमियत है इस शे'र में। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
आदरणीय जयनित जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शे'र-दर-शे'र दाद कुबूल फरमाएं. इस मिसरे को सीधा कह सकते है-
//कोई आलीशान इमारत देखना//
दुसरे=> दूसरे
आ0 भाई जयनित जी सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई । दूसरे असआर में दूसरे की जगह दुसरे हो गया है इस टंगण त्रुटि को ठीक कर ले । पुनः बधाई ।
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