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हकीकत.....

उस दिन
जब तुमने मेरे काँधे पे
अपना हाथ रखा था
कितने ख़ुशनुमा अहसास
मेरे ज़हन में
उत्तर आये थे
लगा भटकी कश्ती को
जैसे साहिलों ने
अपनी आगोश में ले लिया हो
मगर मैं उन सुकून देते लम्हों को
कहाँ पहचान पायी थी
क्या खबर थी कि तुम
इज़हारे मुहब्बत के बहाने
मेरे कमजोर कांधों की
ताकत नाप रहे थे
मैंने तुम्हें अपना सागर मान
अपने वज़ूद को
तुम्हें सौंप दिया
आज तक
तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन
दूर तक मेरे ज़िस्म में
आज भी जीवित है
और मैं
हथेली पर गिरी
हकीकत की इक बूँद के साथ
आज भी तन्हा खड़ी हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 16, 2015 at 6:15pm

आदरणीय  vijay nikoreजी प्रस्तुति को मान देती आपकी इस आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 1:39pm

 //तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन 
दूर तक मेरे ज़िस्म में 
आज भी जीवित है 
और मैं 
हथेली पर गिरी 
हकीकत की इक बूँद के साथ 
आज भी तन्हा खड़ी हूँ//

कोमल भाव से भरपूर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on December 15, 2015 at 12:07pm

आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति को मान देती आपकी इस आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Samar kabeer on December 14, 2015 at 10:14pm
जनाब सुशील सरना जी,आदाब,हमेशा की तरह यह कविता भी दिल को छूती हुई महसूस हुई,आपने अपने ख़यालों को अच्छे शब्द दिये हैं,ढेरों दाद के साथ बधाई स्वीकार करें ।

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