नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )
राम राम भाई
आज दुकान खोलने में बड़ी देर लगाई
हमने भी पड़ोसी को राम राम कहा
और अपनी नासाज़ तबियत का हवाला देते हुए
अपनी दुकान का शटर उठाया
धूप अगरबत्ति जलाकर
उसके धुऐं को दुकान और गल्ले में घुमाया
प्रभु को शीश नवाकर
अच्छी बोहनी के लिए प्रार्थना करके
धूपदानी प्रभु के आगे रखी ही थी कि
एक ग्राहक ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई
हमने चौंक कर
अपनी सुराहीदार गर्दन को
भगवान बने ग्राहक की तरफ घुमाया
एक अधेड़ लेकिन स्वस्थ व्यक्ति ने पूछा
क्यों जी, क्या आप गीत बेचते हैं
हमने गर्दन को सीधा किया,
कालर पर अपनी पतली उंगलियाँ घुमाई
और शिष्टाचार के गिलास में
मुस्कुराहट का शरबत पेश करते हुए कहा
जी हाँ, सौ प्रतिशत
हम नये पुराने,दर्दीले सुहाने
हर मौसम के गीत बेचते हैं
कहिये ! कौन सा पेश करुँ
अच्छा ! ग्राहक ने कहा
वो जो ऊपर ही ऊपर
लाल कपड़े में लिपटा है
कौन से गीत का पुलिंदा है
अरे अरे आपकी तो बड़ी पारखी नजर है
ये वो गीत हैं जिनकी मांग
हर राष्ट्रीय दिवस में होती है
इनमें आजादी के शहीद
सुभाष,भगत सिंह,गांधी,नेहरू,सरदार पटेल
जैसे अनेक शहीदों की कुर्बानियां
नये युग को देश भक्ति का संदेश दे रही हैं
न न, ये नहीं
ग्राहक ने कहा
तो फिर ये देखिये
ये रोमांटिक गीत हैं
और ये घर से आने के गीत हैं
ये दुकान से जाने के गीत हैं
ये प्रेमिका से रूठने के
और ये प्रेमिका को मनाने के गीत हैं
रुकिए रुकिए
इन गीतों के पुलिंदों को
जरा धीरे से हाथ लगाना
ये औलाद के लिए तड़पती
किसी माँ के आंसुओं में भीगे गीत हैं
उस ग्राहक ने
वो गीत ले कर अपने
सीने से लगा लिए
और चश्मे के भीतर
बहते आँसू छुपा लिए
हम भी थोड़े से संजीदा हो गये
खैर छोडिये
हमने अपनी दुकानदारी फिर चलाई
ये आज के जमाने की गीत हैं
देखने में क्या हर्ज है
राज की बात है सर
इस से कम कपड़ों के गीत
आपको कहीं नहीं मिलेंगे
और मजे की बात सर
सबसे ज्यादा बिक्री
इन्हीं की होती है
कहिये तो एक पीस ये रख दूं
अरे नहीं नहीं
बाल बच्चे दर आदमी हूँ
ऐसे गीतों से मैं
अपने बच्चों के संस्कारों की बलि
नए ज़माने की संस्कृति पर नहीं चढ़ाऊंगा
ठीक है साहब
जैसी आपकी मर्जी
बुरा न माने
हमें तो पेट की खातिर
सब कुछ रखना पड़ता है
अब देखिये
इन भजनों के गीतों के
पुलिंदों को झाड़ने का भी
समय नहीं मिलता
क्योंकि कोई इसे ख़रीदता ही नहीं
फर्ज,ईमान,और देशभक्ति के गीत
किसी कोने में
अपनी बेबसी पर रोते हैं
झूठी क़समों और वादों के गीतों की
आज तूती बोलती है
आज रेप गीतों का
भविष्य उज्ज्वल है
साहिब ! हमारी दो वक्त की रोटी
ऐसे ही गीतों की बदौलत है
सच मानिये सर
जमाने के साथ चलने में ही
आपकी भलाई है
वरना इस अंधी दौड़ में
आपके संस्कार, आपके उपदेश,
सब दौड़ते कदमो के नीचे कुचले जायेंगे
किसी पुराने कागज के टुकडों की तरह
हवा में बिखर जायेंगे
हमारी फटी कमीज और टूटी चप्पल
इसी शराफत का आईना है
ये हमारी और आपकी पसंद का नहीं
श्रीमान ! ये नई पसंद का जमाना है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी प्रस्तुति पर आपके स्नेहात्मक आशीर्वाद का हार्दिक आभार।
सरना जी -बहुत बढ़िया रचना है -आपने हकीकत को एक नए अदाज में बयां किया है . मेरी और से बधाई .
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति पर आपकी ज़र्रानवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया।
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