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पवन व अशोक बहुत अच्छे दोस्त, मगर जब भी कभी पवन, अशोक से समाज की किसी समस्या के बारे में बात होती तो उस का बना बनाया एक ही जवाब होता ।

“कि मेरे साथ  राजनीती की बात न करो, सायद उस ने सोच रखा है कि जिन बातों का उस के घर, बच्चों व नौकरी से संबध नहीं, वो सभी बातें फजूल है ।“  

अशोक को घर में भी ऐसी बहस फजूल सी लगती ।

पवन को बात शुरू करते ही अशोक कह देता और कोई  बात करो , राजनीती नहीं , वरना वह शुरू होते ही विराम लगा देता,और कई बार  वहाँ से उठ कर चला जाता ।  

मगर पवन ने भी ठान ली कि ऐसे इमानदार लोगों को पता होना चाहिए,कि राजनीती कैसे कैसे गुल खिलाती और समाज राजनीती कि बगैर चल भी नहीं सकता, तो कैसी राजनीती हो।

 “कैसे हो सकता है कि मनुष्य समाज में रहे और उस की समस्याओं के बारे कोई बात ही न करे”, पवन ने खुद को सवाल किया  ।

मगर पवन ने अब  ठान ली कि अशोक जैसे आदमी को समाज की समस्याओ के बारे बताया जाए ।

आज जब पवन ने अशोक के साथ इस मुद्दे पर चर्चा शुरू की, तो अशोक ने पहले जैसा ही विरोध जाहिर किया, मगर पवन ने उसे पकड़ कर अपने पास बिठा लिया और अपनी बात जारी रखते हुए कहा “बता अशोक, क्या तुम घर के फैसले नहीं लेते,जब फैसला लेते हो तो इस बात का ध्यान तो  रखते हो कि घर का कोई नुकशान न हो”

“हाँ, ये तो है”, मगर कुछ लोगों के फैसले के कारण अगर समाज में समस्यां पैदा हो रही हो तो इस के बारे में सोचना तो चाहिए ।

“हम को उनका विरोध करना चाहिए”, अशोक ने कहा

“तो ये विरोध कैसे कर सकते है”, पवन ने कहा

“वोट डाल के यां  ......., “अशोक ने कहा  

“तो ये क्या है” ?, यही तो राजनीती है, जिस से तुम दूर भागते हो और इसके बारे में बात करना भी पसन्द नहीं करते,पवन ने अशोक को राजनीती के सबंध में उदारहण से समझाते हुए कहा

“गलत ठीक का पता तभी चलेगा,जब विचार चर्चा होगी, अगर एक दुसरे से विचार चर्चा नहीं होगी, तो मुक समाज ऐसे ही  शिकार होता रहेगा ।“

हमें तभी पता चलेगा कि समस्या का हल कैसे हो, चार सिर जुड़ कर बैठेगे,तो ......  

“हाँ ये तो है , तो फिर राजनीती” ।

“हाँ तो यही तो राजनीती है,और क्या है ?”ये  कोई आकाश से उतरी हुई शै तो है नहीं इस धरती की उपज है”, पवन ने कहा

ये सुनते ही अशोक के मन में पता नहीं क्या विचार आया, उसने पवन से कहा, “अब पहल मेरी तरफ से होगी,चर्चा के लिए एजंडा मैं ही तैयार करूंगा”, तभी अशोक ने पेपर पर कुछ लिखना शुरू किया, और पवन उसकी तरफ देखने लगा । 

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"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by मोहन बेगोवाल on December 14, 2015 at 7:12pm

 हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग होते खास कर  मध्य वर्ग के जो खुद व परिवार तक ही  सीमित रखते, ऐसे लोग समाज में तबदीली का कारक नहीं बनते, जिस कारन देर तीक समाज समस्याओं को झेलता रहता है  , आदरनीया आरती जी, आप जी के  इस लघुकथा को और प्रभावपूर्ण बनाने,अगर कोई  सूझाव हो तो प्रगट करने के  लिए धन्यवाद  

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on December 14, 2015 at 6:06pm

इस कथा के माध्यम से आप क्या बताना चाहते है ये समझने मे मुझे कुछ असुविधा हो रही है.कृपया स्पष्ट करे.

कृपया ध्यान दे...

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