For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ूबसूरती (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही

विशाल प्राँगण की खूबसूरत बुलन्द इमारत की मुंढेर पर बैठा ब्लड कैंसर उदासी के साथ नीचे कड़ाके की ठण्ड में काँपते मरीज़ों के परिजनों को देख रहा है।

" इतने मायूस क्यों हो भाई ? "थके स्वर में दिल की बीमारी ने पूछा।

" बहन ! बारह साल का बच्चा अंतिम सांसें गिन रहा है। मेरे नाम एक और मौत दर्ज़ होने जा रही है।"

" ये तो यहाँ का रोज़ का ही काम है।मेरा भी दिल दुखी हो जाता है।"

तभी वहाँ किडनी की बीमारी आ गई
" मैं तो असमंजस में हूँ।अभी तक कोई डोनर नहीं मिला। न जी पा रही हूँ न मर पा रही हूँ।"

"मैं तो प्रेत की तरह भटकते इनके परिजनों को देखकर परेशान हो जाता हूँ।अपनों की उम्मीद में' ज़र- ज़मीन बेच कर यहाँ पड़े हैं।" ब्लड कैंसर ने गहरी साँस लेते हुए कहा।"

अचानक नीचे से शोर-शराबे की आवाजें आने लगी।
गार्ड अस्पताल परिसर में सोये लोगों को डंडे से कोंच -कोंच कर भगा रहा था।
" इस कड़ाके की ठण्ड में कहाँ जाएँ?
लोगों ने मायूस होकर कहा।
" बाहर बस स्टेशन में या मेट्रो स्टेशन के बाहर जाकर सोना।"

"पर आप रोज़ हमें यहां से क्यों भगाते हैं ?"

" देखते नहीं आप लोग जहां-तहाँ सो जाते हैं इससे अस्पताल की खूबसूरती बिगड़ जाती है।"

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 19, 2015 at 9:25am
बेहतरीन प्रतीकात्मक चित्रण हुआ है अस्पतालों का, पीड़ितों का। कमाल किया है आपकी लेखनी ने । हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 12:14pm
तहेदिल से सादर आभार आ.प्रतिभा जी।आपकी दृष्टी ने कथा को एक न्य आयाम दिया।नमन।
Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 12:12pm
सादर आभार आ.राजेश कुमारी जी ।आपकी कथा पर सुखद उपस्तिथि ने कथा को जो मान दिया उसके लिए हार्दिक पुनः अभिनन्दन
Comment by pratibha pande on December 18, 2015 at 10:09am

बहुत  मार्मिक तथ्य को कथा में पिरोया है आपने , सरकारी अस्पतालों में ये दृश्य आम है ,डॉक्टर के राउंड के समय तो इतनी खींचातानी करते हैं रोगी और उसके घरवालों के साथ कि बस ,  बधाई स्वीकार करें इस सार्थक रचना पर आदरणीया जानकी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 18, 2015 at 9:53am

इंसानों की इंसानों के प्रति संवेदनहीनता को एक हकीकत से रूबरू करवाया है कहानी के माध्यम से एक तरफ ठंडा मौसम कोई अपना बीमार ऊपर से गार्ड द्वारा प्रताड़ना सच्चाई को बयाँ करती इस शानदार लघु कथा हेतु बहुत- बहुत बधाई आपको जानकी जी. 

Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 8:30am
सादर आभार सत्यम नारायण जी
Comment by Shyam Narain Verma on December 17, 2015 at 5:25pm
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..
Comment by Janki wahie on December 17, 2015 at 5:18pm
सादर आभार आ.नीता जी आपकी सुखद उपस्तिथि ने कथा को मान दिया। नमन।
Comment by Janki wahie on December 17, 2015 at 5:17pm
तहेदिल से आभार प्रिय राहिला ।कथा की बखूबी समझ कर प्रतिक्रिया देने के लिए।
Comment by Rahila on December 17, 2015 at 2:44pm
बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने अपनी रचना के जरिये प्रिय जानकी दी !वाकई मरीज के साथ अटेन्डर की हालत मरीज से कम नही रह जाती । सलाम आपकी लेखनी को । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service