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गज़ल - ग़म किसी का किसी की राहत है - गिरिराज भंडारी

2122  1212   22  /112

क्या नहीं ये अजीब हसरत है ?

ग़म किसी का किसी की राहत है

 

ख़ाक में हम मिलाना चाहें जिसे

उनको ही सारी बादशाहत है

 

रोटी कपड़ा मकान में फँसकर

बुजदिली, हो चुकी शराफत है

 

हर्फ करते हैं प्यार की बातें

आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है

 

मुज़रिमों को मिले कई इनआम

आज मजलूम की ये क़िस्मत है

 

बेरहम क़ातिलों को मौत मिली

सेक्युलर कह रहे , शहादत है

 

हाँ, ख़ुदा भी कहीं पे है लेकिन  

देश हित ही सही इबादत है

 

आइना हो के भी तू  है पत्थर

अब अयाँ तो तेरी भी सूरत है   

***************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:29am

इस गज़ल को फीचर करने के लिये  आदरनीय मुख्य संपादक  का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:27am

आदरणीय लून करण भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:26am

आदरणीय रवि भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:26am

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका तहेदिल से शुक्रिया गज़ल की तारीफ के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:25am

आदरनीय नीरज भाई , आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:24am

आदरनीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:24am

आदरणीय जयनित भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2016 at 10:23am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , उत्साह वरधन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by LOON KARAN CHHAJER on January 8, 2016 at 5:56pm

हाँ, ख़ुदा भी कहीं पे है लेकिन  

देश हित ही सही इबादत है

 बहुत अच्छी गजल के लिए साधुवाद।

Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 5:34pm

आदरणीय गिरिराज जी क्‍या खूब ग़ज़ल कही है आपने कुछ पंसदीदा बह्र में से एक यह भी है हमारी  दिली दाद कुबूल करें इस ग़ज़ल के लिये । सादर

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