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गज़ल -- जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222     1222 

बजाहिर जो लगे हैं ग़मगुसार अपना

छिपा लाये हैं फूलों में वो ख़ार अपना

 

बहुत गर्मी यहाँ मौसम ने दी हमको

जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना

 

जो लूटे हैं वो वापस क्या हमें देंगे

चलो हम ही कहीं खोजें करार अपना

 

ज़रा रुकना, उन्हें गाली तो दे आयें 

नहीं अच्छा रहे बाक़ी उधार अपना

 

बुढ़ापा बोलता तो है , सहारा  ले

मगर अब भी उठाता हूँ,मैं भार अपना

 

मै सीरत , सादगी से खिंच के आया हूँ  

तू ज़ुल्फों को, न चेह्रे को, निखार अपना

 

तेरे दफ्तर की नाराजी परे ही रख

न घर में यूँ तू ग़ुस्से को उतार अपना

 

तेरी इंसानियत कोई न सूंघेगा

गुमाँ में यूँ न इक लम्हा गुज़ार अपना 

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by जयनित कुमार मेहता on January 17, 2016 at 10:52am
वाह! आदरणीय, बहुत ही खूबसूरत और यथार्थपरक ग़ज़ल कही आपने.. बधाई!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2016 at 3:54pm

आदरणीय शेख शहज़ाद भाई , गज़ल पर शिर्कत और हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2016 at 3:52pm

प्रिय अनुज रवि , गज़ल की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ।
आपकी सलाह उचित है --  न घर में यूँ  कभी गुस्सा उतार अपना  -- मै सुधार कर लूंगा । आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2016 at 3:49pm

आदरनीय नूर भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 13, 2016 at 2:33pm
वाााह...
// मै सीरत , सादगी से खिंच के आया हूँ
तू ज़ुल्फों को, न चेह्रे को, निखार अपना//
//तेरी इंसानियत कोई न सूंघेगा
गुमाँ में यूँ न इक लम्हा गुज़ार अपना//.... यथार्थ के धरातल पर सच्चाई बयान करती ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।
Comment by Ravi Shukla on January 13, 2016 at 2:26pm

आइरणीय गिरिराज जी बहुत बढि़या ग़ज़ल हुई है

बुढ़ापा बोलता तो है , सहारा  ले

मगर अब भी उठाता हूँ,मैं भार अपना

बहुत अच्‍छा शेर लगा हमें बधाई

तेरे दफ्तर की नाराजी परे ही रख

न घर में यूँ तू ग़ुस्से को उतार अपना इसके सानी मिसरे में हमें गुस्‍से के साथ अपने सही लगता है पर रदीफ के लिहाज से इसे अगर

न घर में यू कभी गुस्‍सा उतार अपना  करे तो देखे तो कैसा लगेगा । सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 13, 2016 at 8:49am

वाह... खूब ग़ज़ल हुई है ..बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2016 at 7:16am

आदरनीय अजय भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by ajay sharma on January 12, 2016 at 10:10pm

तेरे दफ्तर की नाराजी परे ही रख

न घर में यूँ तू ग़ुस्से को उतार अपना..........kya baat hai sir ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 8:13pm

आदरणीय महर्षि भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

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