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मुक्तिदाता मृत्यु

मैं स्वछन्द घूमती रहती
जिसको चाहे उसे ले जाती
भनक भी न उसे लगाती
दुखो से मुक्ति झट दे जाती
मृत्यु मैं जो कहलाती

जीवन का दस्तूर बताती
लालसा को परिपूर्ण कराती
बर्बरस्ता को यूँ मिटाती
पूर्ण आनंद का अनुभव कराती
मृत्यु मैं जो कहलाती

खुले क्षितिज में तुम्हे घुमाती
जीवन- मरण का भेद कराती
रिस्तो का तुम्हे बोध करा

सत्यता की दुनिया दिखाती
मृत्यु मैं जो कहलाती

फल बुराई का तुझे दिखाती
अंत समय जब मैं तडपाती
प्राण तेरे जब मैं हर जाती
मोह माया से तुझे छुड़ाती
भ्रम के जाल से निकाल
परमेश्वर के दर्शन कराती
मृत्यु मैं जो कहलाती

.

“मौलिक व अप्रकाशित रचना”

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 3:52pm

आदरनेय फूल सिंग भाई , यथार्थ दर्शन कराती आपकी कविता के लिये बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 10, 2016 at 10:43am
जनाब फूलसिंह जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 8, 2016 at 9:38pm
यथार्थ, सार्वभौमिक सत्य को शाब्दिक करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय फूल सिंह जी।

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