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दाँस्ता- आज के इंसान की

दाँस्ता- आज के इंसान की

 

मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो

स्वार्थी चाहे दम्भी बोलो

अहंकारी, कुकर्मी बोलो

जो भी बोलो सोच के बोलो

मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो

 

स्वार्थसिद्धि की, ताक की में रहता

क्षणभर की ना देरी करता

भिन्न भिन्न अपने वेश बदल के

जन भावना की बातें करता

कौन हूँ मैं, तुम कुछ तो बोलो

जो भी बोलो सोच के बोलो

 

 रोते को, मैं खूब रुलाया

जो हँसा फिर उसे रुलाया

अधर्मियों का साथ निभा

वक़्त में तेरे काम  ना आया

कौन हूँ मैं कहा से आया

इस बारे में कुछ तो बोलो

जो भी बोलो सोच के बोलो

 

गुंडागर्दी खूब मचा के

अत्याचार में मन लगा के

बलात्कार कर, शान दिखाऊं

अपने किये पर, ना पछताऊं

विश्वास को ठेस लगा के

चोट तुझे हर पल दे जाऊं

अपने बारे मैं क्या बोलूं

तुम ही बोलो

मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो

 

दाग नहीं बेदाग़ नहीं मैं

जटिल नहीं आसां नहीं

राम नहीं शैतान नहीं मैं

शान नहीं अतिशान नहीं

तेरे संग ही आया जग मैं

अब तो ले, पहचान

अरे मैं हूँ आम इंसान

आज का ही इंसान

मैं हूँ आम इंसान

“मौलिक व अप्रकाशित रचना”

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Comment

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Comment by Samar kabeer on January 17, 2016 at 10:31am
जनाब फूल सिंह जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 16, 2016 at 5:39pm
कलयुग की आधुनिक सदी के मानव का चित्रण करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय फूल सिंह जी।

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