For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनता है मेरा खुदा (लघुकथा )राहिला

"बात तब या अब की नहीं जुबान की है बहिन जी!आपकी मांग, अगर रिश्ता तय करने से पहले पता चल जाती तो हम ये रिश्ता करते ही नहीं । लेकिन शादी के ऐन सात दिन पहले ऐसी बात. ..."कह उनके चेहरे से बेबसी झलक गई।
"तो ठीक है अब तोड़ दीजिये,हमारा क्या बिगड़ेगा?बदनामी तो आपकी बेटी की होगी ।और वैसे भी आपने अपनी बेटी की शक्ल देखी है कभी?ऐसी लड़की को तो वैसे भी ज्यादा से ज्यादा ले दे के ठिकाने लगाना पड़ेगा । वो तो एहसान मानिये हमारा जो हम सिर्फ उसकी उच्च शिक्षा के बूते पर उसे कुबूल कर रहे हैं वरना.."कहते -कहते वो अपने हुस्न पर इतरा उठी।लेकिन वहीं -
एक मां की आंखों में अपनी इकलौती लाड़ली बेटी की कुबूलसूरत झूल गई जिसके लिये अभी -अभी नश्तर से तेज शब्दों ने उसका कलेजा छलनी-छलनी कर दिया।दिल खून के आंसू रोया, हलक,जिसमें बहुत कुछ घुट सा गया।लेकिन ये खामोशी आसमान चीर गई । और फिर बिना किसी जिरह के उन्होनें ऐसे लोगों को अपनी बेटी सौंपने से अच्छा इंकार समझा।स्थिति अब उलट गई थी । उनकी दबाब बनाने की योजना विफल क्या हुई वे बौखलाये से सीधे स्टेशन पहुँचे । गुस्से और अपमान से भरी लड़के की मां जाने किस की बद्दुआ से ऐसी लड़खड़ाई कि औंधें मुंह प्लेटफार्म से पटरियों पर जा गिरी और लहूलुहान हो गई । लोग उठाने के लिये दौड़े, वो औरत जिसे सारी उम्र अपनी खूबसूरती का गुमान भरा था। पल भर में बिना दांत की,चोटिल भयानक सूरत की पर्याय बन गयी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:37am
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी! आपकी स्नेहिल उपस्थित से गद -गद हूं आज । सादर धन्यवाद

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:44am

बहत खूब राहिला जी, अच्छी लघुकथा हुई हैI  यह सच है कि मासूम के दिल से निकली आह असर ज़रूर दिखाया करती है, बधाई स्वीकार करेंI  

Comment by Rahila on January 12, 2016 at 5:11pm
आदरणीय गिरिराज सर जी !आप ये रचना पढ़ कर दिल से सुकून महसूस कीजिये । जैसा मैं कर चुकी हूं जिससे आस्था का रंग और गहरा हुआ । नही तो इतने प्रवाह से मैं ये रचना कभी नहीं लिख पाती । सादर प्रणाम ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 3:59pm

आदरणीया राहिला जी , काश ऐसा ही हो , पढ के मन को सुकून मिला कि ऐसा ही होता होगा , अब चाहे हो या न हो । इस कथा के लिये आपको बधाई ।

Comment by Rahila on January 11, 2016 at 8:13pm
आदरणीय सुशील जी !आदरणीय मुजफ्फ़र साहब!और आदरणीय तेजवीर सर जी! आप सब का बहुत आभार, बहुत शुक्रिया कि आप सब ने अपना कीमती वक्त मेरी रचना को दिया और सराहा । आप सब की हौसला अफज़ाई ही मुझे निरंतर लेखन के लिये प्रेरित करती है । आप सब को सादर नमन ।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 11, 2016 at 6:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी!बेहतरीन लघुकथा!

Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on January 11, 2016 at 12:06am

समाज में व्याप्त एक ऐसी बुराई ,जिसको ख़त्म करने की तमाम तर कोशिशें भी नाकाम हो चुकीं हैं। इस लघु कथा के माध्यम से आपने एक सटीक चोट की है। वास्तव में अन्त में "सुनता है मेरा खुदा" . . . . 

Comment by Sushil Sarna on January 10, 2016 at 7:38pm

बहुत खूब आदरणीया राहिला जी आपने समाज में व्याप्त लड़के वाले होने के अहंकार के परिणाम को दर्शा कर एक संदेशात्मक लघु कथा प्रस्तुत की है। इस संवेदनशील प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं। 

Comment by Rahila on January 10, 2016 at 2:49pm
आदरणीय सुनील जी !मैं आपकी बात से सहमत हूं दुआ की जगह बद्दुआ जल्दी कुबूल होती है जानते है क्यूं ,क्योंकि दुआ मांगने में उतनी शिद्दत नही होती जितनी बद्दुआ देने में लोग लगाते है । बद्दुआ में तो रोम रोम शरीक हो जाता है । हा. .हा. .हा ..
Comment by Rahila on January 10, 2016 at 9:45am
सच तो ये है आदरणीय सुधिजनों!ये आप सब के आशीर्वाद और प्रोत्साहन का प्रताप है जो मेरी रचना को आपकी सराहना मिली । कोटी-कोटी नमन और सादर आभार आप सब का ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service