ए सी केब से उतर कर कैमरा,जूम लैंस,बाईनाकुलर सम्हाल भरतपुर बर्ड सेंचुरी में दस दिन बिताने का प्रोग्राम..
"यह क्या भाई सा ? कोई चहल पहल नहीं, बंद है क्या?"
"नहीं तो लोग आते है,दो घंटे में देख कर चले जाते हैं।"
"दो घंटे में तो अंदर झील तक ही नहीं पहुंच पायेंगे।"
"कहां की झील,सब सूखा पड़ा है।"
"यें... कहाँ गए वे दरख्त, घास के हरे भरे मैदान, झील पानी और कलरव।"
"सब झुलस गऐ, सूख गऐ, पिछली साल जो पंछी बचे थे, गर्मी में पेड़ों से पके फलों की तरह टपक गऐ, साइबेरियन क्रेन तो कई सालों से आ ही नहीं रही हैं।
जानवरों के नाम निशान तक नहीं बचे।"
"अब तो एक हाल में फोटो और वीडियो तथा चिड़ियों के स्पेसीमेन ही बचे हैं सेंचुरी के नाम पर।"
पच्चीस साल पहले ही तो आया था पापा के साथ तब मेरे पास कैमरा नहीं था,कितना मचला था,आज कैमरा लेकर आया हूँ,पर....क्या हो गया इतने सालों में। ओह मैं चल नहीं पा रहा हूँ,गर्मी के कारण पांव लड़खड़ा रहे हैं ,सांसें तेज चल रही हैं।
"उठो क्या हो गया,इस ठंड में पसीने से भीग गये हो,
कोई बुरा सपना देखा क्या?"
ऐ तपन बरदाश्त नहीं हो पायेगी ,जल जायेगा हमारा मुन्ना। अब हम हर साल कम से कम पांच पेड़ तो जरूर लगायेंगे।
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पवन जैन,जबलपुर।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय फूल सिंह जी धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर, आप बहुत बहुत बधाई
आदरणीय लडीवाला सा0 बहुत बहुत आभार कथा की नब्ज पकडने हेतु।
ग्लोबल वार्मिंग का असर सब जगह पडा है मगर जहां पेड़ पौधे कट गए वहाँ तो स्थिथि बेहद बिगड़ गई | ऐसे में पेड़ लगाने का
सुंदर सन्देश देती रचनाओं का विशेष महत्व है | बहुत बहुत बधाई
आदरणीय समर कवीर सा0 बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय शहजाद जी कुछ प्रयास कर रहा हूँ जिस और सर जी ने इशारा किया था उस पर कुछ कहने का।मंच पर नया हूँ,आप लोगों का मार्गदर्शन अपेक्षित है।
आदरणीय राहिला जी तहे दिल से शुक्रिया।
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