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तू जीता है,मगर ज़िंदा नहीं है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

अगर दिल में तेरे करूणा नहीं है
तू जीता है, मगर ज़िंदा नहीं है

वो क्या समझे किसी की अहमियत को
कि जिसने कुछ,कभी खोया नहीं है

तेरी आँखों के मयखाने में बैठा
कहे ये दिल,कोई तुझ सा नहीं है

उगाते हैं जो दाना,उनके घर में
कभी चावल,कभी आटा नहीं है

मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है

मेरी मंज़िल खड़ी है जिस जगह पर
वहां तक रास्ता जाता नहीं है
========================
(मौलिक व अप्रकाशित)

जयनित कुमार मेहता

Views: 804

Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on January 11, 2016 at 4:09pm
.बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बहुत २ बधाई
Comment by जयनित कुमार मेहता on January 11, 2016 at 12:21pm
आपका हार्दिक आभार,आदरणीय रवि जी।
Comment by Ravi Shukla on January 11, 2016 at 12:00pm

बधाई आदरणीय जयनित जी सुन्‍दर ग़ज़ल हुई है

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