2122 2122 2122 212
हमने किस किस से न पूछा ज़िन्दगी तेरा पता ।
हमको ले आया ग़मों में ऐ ख़ुशी तेरा पता ।
ऐ मुहब्बत दूर मुझसे अब न तू जा पाएगी ,
दे रहा है अब मुझे ये दर्द भी तेरा पता ।
हाथों में दीपक बुझा था दूर तारे थे बहुत ,
जुगनुओं से हमने पूछा रौशनी तेरा पता ।
माना ढलती उम्र में चाहत भी तेरी ढल गयी ,
ढूंढता है इक दीवाना आज भी तेरा पता ।
उनसे नज़रें क्या मिलीं दिल शायराना हो गया ,
आशिकी में मिल रहा है शाइरी तेरा पता ।
हमने माना राह दिल की बंदगी तुझसे मिली ,
पर लुटाकर जाँ मिला है बंदगी तेरा पता ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा
Comment
हार्दिक बधाई ...
अति सुंदर रचना आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
अति सुंदर रचना आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
आदरणीय नीरज भाई , अच्छी गज़ल कही है , समर भाई की सीख को ध्यान दीजियेगा , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय नीरज साहब, दाद कुबूल करें
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