2222 2222 2222 2222
दिन रात भरी तनहाई में इक उम्र गुज़ारी भी तो है ।
पाकर तुमको एहसास हुआ इक चीज हमारी भी तो है ।
हम बैठ तसव्वुर में तेरे बस ख्वाब नहीं देखा करते,
तेरी सूरत इन आँखों से इस दिल में उतारी भी तो है ।
मसरूफ नहीं दिखता यूँ ही सच में मसरूफ ही रहता हूँ ,
कुछ दिलदारी की बातें हैं कुछ दुनियादारी भी तो है ।
दिन रात हमें तड़पाता है माना ये दर्द जुदाई का,
पर इसमें तेरी यादों की हर वक्त खुमारी भी तो है ।
मकबूल भले ही दुनिया में इक नाम हमारा है आशिक ,
पर लूट लिया दिल आशिक का कुछ बात तुम्हारी भी तो है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा
Comment
हम बैठ तसव्वुर में तेरे बस ख्वाब नहीं देखा करते,
तेरी सूरत इन आँखों से इस दिल में उतारी भी तो है ।........वाह ! बहुत खूब.
खुबसूरत गजल हुई है आदरणीय नीरज मिश्रा जी. बहुत-बहुत बधाई.सादर.
// आयेंगे न तो कहां जायेंगे यही से सीखा सब कुछ //
यह ऐसी स्वीकारोक्ति है, जो किसी सदस्य को दायित्वबोध के प्रति भी सचेत कर देती है. आपका होना इस मंच के अन्यान्य सदस्यों के लिए आवश्यकता बने, नीरज भाई ..
बहुत बहुत हार्दिक शुक्रिया आदरणीय राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय भण्डारी सर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीलेश भाई
बहुत बहुत हार्दिक शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर
आयेंगे न तो कहां जायेंगे यही से सीखा सब कुछ
हम जैसे छोटे छोटे जुगनुओं आप जैसे सूरजों की आभा
में फलने फूलने का अवसर यही पर सुगमता से प्राप्त होता है
आपकी प्रतिक्रिया के लिए कोटि कोटि आभार |
बहुत बहुत हार्दिक आभार श्याम नारायण वर्मा जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल वाह्ह्ह दिल से बहुत बहुत दाद स्वीकार करें नीरज जी
आदरणीय नीरज भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको
वाह ..बहुत खूब
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