"दुश्मन के सैनिक जैसे ही आने वाले होंगे, मैं उस झाड़ी में पत्थर फैंक कर इशारा करूंगा, तीन मिनट में टुकड़ी नंबर एक तैनात हो जायेगी और उनके सामने आते ही गोलीबारी शुरू कर देनी है| किसी को कोई शक?" सरहद पर लेफ्टिनेंट साहब ने आदेश दिया|
"उनके इरादों की भनक पहले ही लग जाने से हमने सैनिकों की इतनी भर्ती कर दी है कि इस सख्त दीवार को तोड़कर दुश्मन हमारे मुल्क का एक पत्ता भी नहीं ले जा सकता है|" कुछ क्षणों बाद सेकंड-लेफ्टिनेंट ने अपने सैनिकों में उत्साह भरते हुए कहा|
"लेकिन हुजूर, हर बार तो हमला हमारी तरफ से ही हुआ है, अगर दुश्मन ने पहले हमला नहीं किया तो? " एक नये भर्ती हुए सैनिक ने पूछा|
"हमारी खबर गलत नहीं हो सकती|"
"हमने इंसानों की दीवार तो बना दी है, लेकिन हुजूर, सूरज की रौशनी हमारे ही मुल्क से उनके मुल्क तक पहुँच जाती है, उसे तो कोई रोक नहीं पाया, कितनी बार हमारे मुल्क की हवा वहां बहती हुई चली जाती है और दुश्मनों को जिंदा रखती है और वो देखो उनके मुल्क की तितली हमारे यहाँ के फूलों का रस पीने आ गयी..."
"ऐ.... हमें सिखा रहा है, क्या ज़्यादा पढ़ा-लिखा है तू, कितना पढ़ा है बता?" लेफ्टिनेंट चिल्लाया
"ढाई हर्फ़ पढ़ा हूँ हुजूर, कबीर का... दुश्मन के मुल्क से छीन कर लाया हूँ यह बात"
लेफ्टिनेंट ने उसकी तरफ तल्ख़ नजरों से देखते हुए एक पत्थर उठा कर झाड़ियों में फैंक दिया|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीय समीर कबीर जी साहब, आदरणीय सतविंदर कुमार जी आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया| पुनः सादर आभार आप सभी का|
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी!शानदार प्रस्तुति!
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