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सीमा उल्लंघन (लघुकथा)

"दुश्मन के सैनिक जैसे ही आने वाले होंगे, मैं उस झाड़ी में पत्थर फैंक कर इशारा करूंगा, तीन मिनट में टुकड़ी नंबर एक तैनात हो जायेगी और उनके सामने आते ही गोलीबारी शुरू कर देनी है| किसी को कोई शक?" सरहद पर लेफ्टिनेंट साहब ने आदेश दिया|

 

"उनके इरादों की भनक पहले ही लग जाने से हमने सैनिकों की इतनी भर्ती कर दी है कि इस सख्त दीवार को तोड़कर दुश्मन हमारे मुल्क का एक पत्ता भी नहीं ले जा सकता है|" कुछ क्षणों बाद सेकंड-लेफ्टिनेंट ने अपने सैनिकों में उत्साह भरते हुए कहा|

 

"लेकिन हुजूर, हर बार तो हमला हमारी तरफ से ही हुआ है, अगर दुश्मन ने पहले हमला नहीं किया तो? " एक नये भर्ती हुए सैनिक ने पूछा|

 

"हमारी खबर गलत नहीं हो सकती|"

 

"हमने इंसानों की दीवार तो बना दी है, लेकिन हुजूर, सूरज की रौशनी हमारे ही मुल्क से उनके मुल्क तक पहुँच जाती है, उसे तो कोई रोक नहीं पाया, कितनी बार हमारे मुल्क की हवा वहां बहती हुई चली जाती है और दुश्मनों को जिंदा रखती है और वो देखो उनके मुल्क की तितली हमारे यहाँ के फूलों का रस पीने आ गयी..."

 

"ऐ.... हमें सिखा रहा है, क्या ज़्यादा पढ़ा-लिखा है तू, कितना पढ़ा है बता?" लेफ्टिनेंट चिल्लाया

 

"ढाई हर्फ़ पढ़ा हूँ हुजूर, कबीर का... दुश्मन के मुल्क से छीन कर लाया हूँ यह बात"

 

लेफ्टिनेंट ने उसकी तरफ तल्ख़ नजरों से देखते हुए एक पत्थर उठा कर झाड़ियों में फैंक दिया|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 25, 2016 at 11:41pm

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीय समीर कबीर जी साहब, आदरणीय सतविंदर कुमार जी आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया| पुनः सादर आभार आप सभी का|

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 22, 2016 at 5:39pm
वाह!बेहतरीन भाव लिए उम्दा कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय चन्द्रेश जी।
Comment by Samar kabeer on January 21, 2016 at 3:14pm
जनाब चन्द्रेश जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |
Comment by TEJ VEER SINGH on January 21, 2016 at 3:00pm

हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी!शानदार प्रस्तुति!

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