For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है / गजल

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है
इक आस शगुन बन के मेरे दिल से उठी है

ये रात जुदाई की है लम्बी मेरे महबूब
हर एक घड़ी इसकी मेरी जाँ पे बनी है

इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़
ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है

आँखें मेरी खुशीयों के कई जाम उंडले साहिब
बस फिक्र है इतनी ये गली तेरी गली है

शबनम ने भिगोया है समाँ चारो तरफ से
बाँहों में जो महबूब के इक रात मिली है

बातों में वफ़ादारी की छलका दे शराबें
साक़ी तेरी बोली में बड़ी जादू गरी है


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 10:57am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कोटि कोटि बधाई l

Comment by kanta roy on January 24, 2016 at 3:11pm
प्रस्तुत गजल पर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आदरणीय तेजवीर जी और आदरणीय शहज़ाद जी हृदयतल से आभार करती हूँ । सादर
Comment by kanta roy on January 24, 2016 at 3:04pm
आपकी प्रतिक्रिया में मार्गदर्शन पाकर मै अभिभूत हुई हूँ आदरणीय समर कबीर जी ।
जहाँ तक इस गजल लेखन की बात हैै तो मै यहाँ आपको बताना चाहूँगी की मै गजल तकनीक से बिलकुल अनजान हूँ ।
इस गजल को मैने गाते हुए लिखे है इसलिए काफिया और रदीफ का ध्यान रखते हुए मैने इसे लिख लिया है । गजल की उन्नीस बहरों में यह कहाँ फिट बैठती है इसका आकलन आप सब वरिष्ठ जनों के सुपुर्द है ।
मै आपके मार्गदर्शन तहत इसे सुधारने की कोशिश करती हूँ अभी । सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:50pm
एक बात और ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे आपने ?
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:48pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,बहुत अच्छे,बढ़िया ग़ज़ल,बधाई स्वीकार करें|
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में 'में'की जगह 'पे'करलें,
चोथे शैर के ऊला मिसरे में 'साहिब'हटा दें |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 24, 2016 at 1:11pm
वाााह..बहुत ही जज़्बाती अश'आर के साथ लफ़्ज़ों को पिरोया है ख़ूबसूरत ग़ज़ल में...
//
इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़
ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है//... तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद इस पेशकश पर मोहतरमा कान्ता राय साहिबा।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 24, 2016 at 12:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी!बेहद खूबसूरत गज़ल!आपको तो  तो हर कला में महारत हांसिल है!

बातों में वफ़ादारी की छलका दे शराबें
साक़ी तेरी बोली में बड़ी जादू गरी है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"तरही की ग़ज़लें अभ्यास के लिये होती हैं और यह अभ्यास बरसों चलता है तब एक मुकम्मल शायर निकलता है।…"
19 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"एक बात होती है शायर से उम्मीद, दूसरी होती है उसकी व्यस्तता और तीसरी होती है प्रस्तुति में हुई कोई…"
44 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी हुई। बाहर भी निकल दैर-ओ-हरम से कभी अपने भूखे को किसी रोटी खिलाने के लिए आ. दूसरी…"
53 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी निबाही है आपने। मेरे विचार:  भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आ इन्सान को इन्सान…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122 1 मुझसे है अगर प्यार जताने के लिए आ।वादे जो किए तू ने निभाने के लिए…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपने ठीक ध्यान दिलाया. ख़ुद के लिए ही है. यह त्रुटी इसलिए हुई कि मैंने पहले…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी, आपकी प्रस्तुति का आध्यात्मिक पहलू प्रशंसनीय है.  अलबत्ता, ’तू ख़ुद लिए…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलकराज जी की विस्तृत विवेचना के बाद कहने को कुछ नहीं रह जाता. सो, प्रस्तुति के लिए हार्दिक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"  ख़्वाहिश ये नहीं मुझको रिझाने के लिए आ   बीमार को तो देख के जाने के लिए आ   परदेस…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत सुंदर यथार्थवादी सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई सर"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश जी..ख़ुर्शीद (सूरज) ..उगता है अत: मेरा शब्द चयन सहीह है.भूखे को किसी ही…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मतला बहुत खूबसूरत हुआ,  आदरणीय भाई,  नीलेश ' नूर! दूसरा शे'र भी कुछ कम नहीं…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service