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बहुत ही कमाल का कथानक चुना है अपनी बात कहने के लिए राहिला जी, वाह!! लघुकथा बहुत प्रभावशाली हुई है, बधाई हाज़िर हैI
लघुकथा का उद्देश्य अनुचित व्यवस्था पर कड़ा प्रहार कर जि़न्दगी के किसी क्षण विशेष के अंदर छुपे सत्य की सूक्ष्म एवं पैनी अभिव्यक्ति है जो ना केवल संवेदनशील पाठक की मानसिकता को झकझोरने के साथ-साथ कोई गंभीर चिन्तन बीज प्रदान करती है बल्कि उसे कुछ सोचने पर विवश भी करती है। लघुकथा तीक्ष्ण वेग से चलती हुई अपने शिखर बिन्दु पर पहुंच कर एकदम से समाप्त हो जाती है। समाप्त होने के बाद वह पाठक के मन मस्तिष्क पर चलती है, उसे कुछ सोचने पर बाध्य करती है। आपकी प्रस्तुत लघुकथा एकदम से इन बिन्दुओं पर खरी उतरती है । /"हैरान ना हों बेग़म...!औलाद और वालिदैन के बीच फर्जों की अदायगी पहले वालिदैन की होती है फिर औलाद की।लेकिन यहां बाप से चूक हो गयी।"/ यह पंक्ित किसी भी संवेदनशील पाठक को बहुत कुछ सोचने पर बाध्य करती है। समस्या की मूल जड़ पर प्रहार करती आपकी इस सफल प्रस्तुति के लिए आपको असीम शुभकामनाएं। कथा का शीर्षक भी कथा से पूर्णत न्याय कर रहा है जिस हेतु आप अतिरिक्त बधाई की हकदार हो। सादर शुभकामनाएं आदरणीय राहिला जी ।
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