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चूक( लघुकथा )राहिला

दरबार खत्म हुये काफ़ी वक्त हो चुका था। लेकिन बादशाह सलामत अभी तक ज़ेहनीतौर पर जैसे वहां से लौटे ही नहीं थे।
"क्या बात है जहांपनाह!आप इतने खामोश?लगता है आज दरबार में कोई खास बात हो गई।"बादशाह को काफ़ी देर से गुमसुम देख बेग़म बोली।
"हम्म..सही कह रही है आप!अभी तक बहुत मुकदमे देखे बेगम!लेकिन आज के जैसा नहीं देखा।
"अच्छा!!ऐसा क्या खास था इस मुकदमे में।"हैरानी से बेगम ने पूछा ।
"एक बूढ़े लाचार बाप ने अपने निहायती बदतमीज,निकम्मे और अय्याश बेटे के खिलाफ मुकदमा दायर ।किया था । उसका कहना था कि जिस तरह एक बाप बेटे के बीच ऐहतराम,खिदमत और खुलूस का रिश्ता होता है ।उसके बेटे ने अपनी हरकतों से इस रिश्ते को ही शर्मशार कर दिया । नौबत बाप के साथ हाथापाई तक आ गई,तब कहीं जाकर मजबूरन उसे मेरी खिदमत में हाजिर होना पड़ा।"
"और आपकी तहकीक़ात क्या कहती है?"
"तहकीकात में भी सारे गवाह सबूत भी लड़के के खिलाफ मिले ।"कहते-कहते बादशाह और गंभीर हो गये।"
"तो फिर क्या सजा मुकर्रर की आपने बेटे की?"
"बेटा मुकदमा जीत गया।"बादशाह ने लंबी सांस छोड़ते हुये कहा।
"क्या!!कैसे?"बेग़म की हैरानी की हद ना रही।
"हैरान ना हों बेग़म...!औलाद और वालिदैन के बीच फर्जों की अदायगी पहले वालिदैन की होती है फिर औलाद की।लेकिन यहां बाप से चूक हो गयी।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Pawan Jain on February 10, 2016 at 2:10pm

वाह राहिला जी,परवरिश में चूक को बहुत अच्छी तरह उकेरा है आपने,बधाई।

Comment by Janki wahie on February 10, 2016 at 12:33pm
वाह वाह प्रिय राहिला , गज़ब लिख डाला।बेहतरीन शिल्प के साथ सार्थक कथा। तहेदिल से बधाई।
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 6:34pm
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी! वाकई बच्चों को अच्छी परवरिश देना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।और उपदेशों से नस्ल नहीं सुधरा करती मां बाप को खुद आदर्श बनना पड़ता है । आपने इतने सुन्दर शब्दों में प्रशंसा की आपका बहुत धन्यवाद ।सादर नमन ।
Comment by TEJ VEER SINGH on February 9, 2016 at 4:33pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी!सुन्दर लघुकथा!बहुत अच्छा विषय चुना!बेटा अगर नाफ़रमानी कर रहा है तो कहीं ना कहीं तो परवरिश में चूक हुई है!पुनः बधाई!

Comment by Rahila on February 9, 2016 at 11:21am
बहुत आभार आदरणीय उस्मानी जी! आपकी हौसला अफज़ाई मेरे लिए बहुत मायने रखती है । बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 9:35am
ग़ज़ब की शैली व शिल्प में बेहतरीन कथ्य सम्प्रेषित करती हुई प्रेरक रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला साहिबा। 'कम लिखो, बेहतरीन लिखो' को पुष्ट करती है आपकी लेखनी।
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 6:18am
आदरणीय मिथलेश सर जी!पहले तो आपकी इस बात की आभारी हूं कि आप मेरी हर रचना की समीक्षा कर मेरा हर बार हौसला बढ़ाते है । इसका बहुत शुक्रिया । और जो टंकन में अशुद्धि हुई वो बाद में मेरे संज्ञान में आई।उसके लिये आप सब से माफी चाहूंगी । सादर
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 6:02am
आदरणीया प्रतिभा दी!आपने जिस तरह से रचना की तारीफ़ की मेरी खुशी ही दुगनी हो गई । बहुत शुक्रिया, बहुत आभार ।
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 5:59am
बहुत आभार आदरणीया नीता दी!आपने सही कहा ऐसे पिता जो अपने छोटे -छोटे बच्चों के सामने आदर्श जीवन ना जीकर मनमाने तौर तरीके अपनाते है । आगे जाकर उनके बच्चे में परवरिश की कोताही का परिणाम देखने को मिलता है । सादर
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 5:42am
आदरणीय सुशील सर जी!बहुत आभार आपका । आपने उस बिन्दु को समझा जिसके आधार पर मैंने रचना लिखी । सादर नमन ।

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