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2122 2122 212
बादलों ने दे लिया धरना जरा
रोशनी होगी अभी रूकना जरा।1
चीड़ती लाली घटा को देख तो
है खड़ा कबसेअभी झुकना जरा।2
बात नजरों से मुकममिल हो रही
बंद ही मुख आज बस रखना जरा।3
होंठ देते हैं गवाही मौन की
आँकने का सुख अभी चखना जरा।4
है वजह कुछ बात बनने की अभी
बोलती बुत है कभी कहना जरा।5
वह शिखर से है उतरती भी कभी
बस कहूँ अपनी जगह उठना जरा।6
छिप गयी जो रोशनी तो क्या हुआ
फिर हँसेगी मत अभी रूठना जरा।7
भर रहा रस है कली में बस कहूँ
देख आती रूत अभी रूकना जरा।8
भींग जायेगी धरा ऐसी समझ
हो रही अब धुत फिजाँ छकना जरा।9
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on February 24, 2016 at 2:28pm
आभार आपका कांता जी,जरा शाबाशी बख्शने के लिये।
Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 9:18am
है वजह कुछ बात बनने की अभी
बोलती बुत है कभी कहना जरा।-----वाह ! क्या बात कही है आपने अपनी इस शानदार गजल में । जरा - जरा ने बहुत ही कमाल कर दिया है आदरणीय मनन कुमार जी । ढेरों बधाई आपको ।
Comment by Manan Kumar singh on February 23, 2016 at 6:51am
आभार मनोज जी।
Comment by मनोज अहसास on February 22, 2016 at 4:41pm
प्रस्तुति के लिए बधाई
सादर
Comment by Manan Kumar singh on February 21, 2016 at 11:19pm
जनाब समर जी,आदाब;सलाह मान्य है।
Comment by Manan Kumar singh on February 21, 2016 at 11:18pm
आदर योग्य मिश्रा जी,आभार।
Comment by Samar kabeer on February 21, 2016 at 3:25pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में क़ाफ़िया दोष कई अशआर में नज़र आ रहा है, दूसरे शैर का सानी मिसरा में एक वचन और बहु वचन देखिये,"बुत"पुरुशलिंग है, देखिएगा !
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2016 at 1:59pm

आदरणीय मनन जी इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

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