For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूखे होठों की चलो प्यास बुझाई जाए (एक ग़ज़ल)......//डॉ.प्राची

2122 1122 1122 22

सारे धर्मों की सही बात उठाई जाए,
उसकी इक बूँद हर इन्साँ को पिलाई जाए।

है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा
सूखे होठों की चलो कहाँ प्यास बुझाई जाए।

आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।

जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेहंदी प्यार की प्यार की मेहंदी जो हाथों में रचाई जाए।

खौफ की ज़द में घिरे मुल्क सभी हैं बेबस
शक्ति ऐसी किसी सागर में डुबाई जाए।इनकी तकलीफ़ भला कैसे मिटाई जाए।

आग में जिसकी झुलसते झुलसती हैं ये कूचे-गलियाँ
क्यों न हर बात वही जड़ से मिटाई जाए।

बह न जाए कहीं आँखों से शरम का पानी
दिल के बंजर आँगन में चलो मेढ़ बनाई जाए।

आज भी घास की रोटी ही निवाला जिनका
उनकी रूठी हुई किस्मत भी मनाई जाए।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 22, 2016 at 11:03am
"ख़ौफ़"वाला शैर सौरभ जी बताएंगे,
"मेढ़"वाला शैर इस तरह किया जा सकता है:-
"शर्म का पानी न बह जाए कहीं आँखों से
दिल के आँगन में चलो मेढ़ बनाई जाए"!
Comment by Samar kabeer on February 22, 2016 at 10:52am
मेरा सुझाव पसन्द करने का शुक्रिया,अब देखना है कि जनाब सौरभ पांडे जी क्या कहते हैं,
वेसे तो ग़ज़ल का हर शैर अपने आप में इकाई का दर्ज रखता हे लेकिन मतला और शैर कतअ बन्द यानी मुक्तक में भी कह सकते हैं !
मेंहदी वाला मिसरा इस तरह कीजिये:-
"प्यार की मेंहदी जो हाथों में सजाई जाए"सजाई लिख दिया भूल से"रचाई"करें !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2016 at 12:05am

सारे धर्मों की सही बात उठाई जाए,
उसकी इक बूँद हर इन्साँ को पिलाई जाए।

है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा
सूखे होठों की चलो प्यास बुझाई जाए
सूखे होठों की कहाँ प्यास बुझाई जाए?
मैंने मतले से लिंक करते हुए इस शेर की कहा था...उसमें जिस बूँद को पिलाने की बात है, दुसरे शेर में उसी बूँद से प्यास के बुझाने की बात कही थी जैसे मुक्तक में कहते हैं । पर अब याद आया की ऐसा सपोर्ट ग़ज़ल में दोष माना जाता है। हर शेर अपने आप में मुक्त व् पूर्ण होता है।

आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।

जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेंहदी प्यार की हाथों में रचाई जाए।
.....प्यार की मेहँदी हथेली पे रचाई जाए।....क्या मेहंदी में दी को गिरा के पढ़ा जा सकता है?

खौफ की ज़द में घिरे मुल्क सभी हैं बेबस
शक्ति ऐसी किसी सागर में डुबाई जाए।

आग में जिसकी झुलसती हैं ये कूचे-गलियाँ
क्यों न हर बात वही जड़ से मिटाई जाए?

बह न जाए कहीं आँखों से शरम का पानी
दिल के बंजर में चलो मेढ़ बनाई जाए।
वैसे अब ये पानी कम ही नज़र आता है, बचे खुचे पानी कोबचाने का भाव लाना चाहती थी , शायद असफल रही
.....दिल की घाटी में चलो मेढ़ बनाई जाए......क्या ये सही रहेगा?

आज भी घास की रोटी ही निवाला जिनका
उनकी रूठी हुई किस्मत भी मनाई जाए।

आभार सहित


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2016 at 11:25pm

वाह ! बहुत सुन्दर बदलाव सुझाया आ० समर कबीर जी . आभार 

सादर 

Comment by Samar kabeer on February 21, 2016 at 11:05pm
"सूखे होटों की कहाँ प्यास बुझाइ जाए"
ये कैसा लगता है ?

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 21, 2016 at 9:48pm

अब मेरे जैसा घोर फ़ैक्चुअल आदमी ऐसे क्लिष्ट इंगित को क्या समझ पायेगा कि आप उस शेर के माध्यम से  न्यूक्लियर पावर का ध्यान कर रही हैं !  हा हा हा हा.......

आजकल तो ख़ौफ़ का मतलब होता है दहशतग़र्दों की कारिस्तानियों, माने आतंकवादियों की नीचता, से उपजा भाव! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2016 at 9:26pm

आ. सौरभ जी

शेर दर शेर ग़ज़ल के विश्लेषण और कमियां बताने के लिए आपकी कृतज्ञ हूँ

सभी सुधार करके ग़ज़ल पुनः पेश करती हूँ

शक्ति वाले शेर में मैंने न्यूक्लिअर पावर के खौफ को जताना चाहा था, रेडियोएक्टिव पावर को तो सागर में ही डुबाया जा सकता है , अब उस शेर को देख कर कृपया अपेक्षित सुधार सुझाएं

सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2016 at 9:21pm

हौसला अफ़ज़ाई और गलती की और इंगित करने के लिए सादर धन्यवाद आ.समर कबीर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 21, 2016 at 8:32pm

मतला आकर्षित करता हुआ है. नीरज की मुक्तिका (जो कि नीरज द्वारा ही ग़ज़ल के लिए एक प्रवर्धित नाम दिया गया है) का एक मशहूर युग्म (शेर) याद आ गया - इन्सान को इन्सान बनाया जाये .. .

है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा

सूखे होठों की चलो प्यास बुझाई जाए।   

तार्किकता के हिसाब से समन्दर से साहिल की भले प्यास बुझती हो. होठों की प्यास समन्दर के पानी से कौन बुझाता है ? यानि इंगित बेतुक का हुआ न ? मुझे तो लगा. इस पर विद्वान पाठक अपनी बात अवश्य कहेंगे. प्रतीक्षा रहेगी. 

आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।

अरे ग़ज़ब ! बहुत खूब ! सही बात !

कपार पर चढ़े, मनबढ़वे अब कान में ज़ोर से टूऽऽऽ करने लगे हैं !!  दिमाग़ झनझनाने लगा है अब ! 

जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेंहदी प्यार की हाथों में रचाई जाए।

आदरणीय समर साहब ने  जिस ओर इशारा किया है, उसे संज्ञान में लें. मेहँदी का वज़न २ २ (मेंह्दी) होता है, न कि २१२. जैसा कि देवनागरी में इस शब्द को हम अक्षरी देते हैं. हिन्दी में मेहँदी को में+हँ+दी की तरह लिखने की परिपाटी है. लेकिन ध्यान से देखिये तो यह मे+हँ+दी  उच्चारित होता नहीं. बल्कि ’मेंह्दी’ ही उच्चारित होता है. 


खौफ की ज़द में घिरे मुल्क सभी हैं बेबस
शक्ति ऐसी किसी सागर में डुबाई जाए।

शक्ति को सागर में डुबाने की बात समझ में नहीं आयी. अगर आपको ख़ौफ़ के बर अक्स ओसामा का हश्र याद आ रहा है और आपका ग़ज़लकार ऐसी ही कुछ उम्मीद अन्य दहशतग़र्दों को लेकर करता है, तो आप शायद अपनी जगह सही हैं. लेकिन ये शेर कुछ और पाये के लिए छटपटा रहा है.  


आग में जिसकी झुलसते हैं ये कूचे-गलियाँ
क्यों न हर बात वही जड़ से मिटाई जाए।

झुलसते या झुलसती ? कुचे और गलियाँ को आपने द्वन्द्व सामासिक चिह्न से जोड़ा है न ? तो फिर अंतिम संज्ञा के अनुसार ही क्रिया होगी. फिर वही को वहीं कर दें.

वैसे उला के मिसरे सापेक्ष सानी का मिसरा तनिक और बल चाहता है.  


बह न जाए कहीं आँखों से शरम का पानी
दिल के बंजर में चलो मेढ़ बनाई जाए।

कहन का इंगित तो कमाल है ! लेकिन दिल के लिए बंजर शब्द तनिक फिट नहीं बैठरहा है. दिल अगर बंजर होता तो आँख से शरम का पानी निस्सृत होता ही नहीं. दिल केलिए विशेषण को तनिक और ग्राह्य होना चाहिए. ऐसा हमें लगता है. देखियेगा. 


आज भी घास की रोटी ही निवाला जिनका
उनकी रूठी हुई किस्मत भी मनाई जाए

बढ़िया शेर हुआ है !

आदरणीया प्राचीजी, आपको ग़ज़ल में इतनी शिद्दत से अभ्यास करते देख कर मन वाकई प्रसन्न है. वह दिन दूर नहीं आप हिन्दी भाषा की एक गंभीर ग़ज़लकार के तौर पर सुनी-पढ़ी जायेंगी. 

दिल से दाद कुबूल कीजिये. 

सादर

Comment by Samar kabeer on February 21, 2016 at 2:57pm
मोहतरमा डॉ प्राची जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें!
चोथे शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है,देखिएगा और बातों के लिये गुणीजनों का इन्तिज़ार कीजिये !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service