For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन तू भला बात कब मानता है- ग़ज़ल ( सुझाव अवश्य दें)

2212 2122 122 2212 2122 122

बोला तो था प्यार करना नहीं पर, मन तू बता, बात काहें न मानी।
इस राह में मुश्किलें हैं बहुत सी, बोला तो था, बात काहें न मानी।।

समझाया था है अगन पथ मुहब्बत, जलने से आगाह तुमको किया था।
छालों की सौगात लेकर तड़प अब, तेरी ख़ता, बात काहें न मानी।

तूफ़ाँ वहीँ अपने भीतर में ही रख, गर्जन ये दिल की तू खुद में चुरा ले।
नैनों से नदिया बहाना मना है, अब सह सज़ा, बात काहें न मानी।।

खामोशियों की चदरिया में अब तो, बांधों समेटो हाँ महफ़िल से खुद को।
घुट घुट के दुःख वाला विष अब पीये जा, अब सोचना, बात काहें न मानी।।

पंकज ने कितनी दफ़ा ये कहा था, रखना ज़रूरी है पानी बचाकर।
मुर्झाने की वज्ह खुद चुन लिया तो, पूछूँ मैं क्या, बात काहें न मानी।।


मौलिक-अप्रकाशित

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 3, 2016 at 7:51pm
आदरणीय दीदी सादर प्रणाम।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2016 at 6:59pm

लंबी बह्र पर सुन्दर भाव के साथ लिखना आसान नहीं आपने अच्छे से निभाया दिल से बधाई लीजिये आ० पंकज वात्सायन जी 

Comment by Ravi Shukla on March 2, 2016 at 6:16pm

आदरणीय पंकज जी  संशोधन के बाद रदीफ में कुछ सकारात्‍मक फर्क तो पड़ा है पर पूरी विनम्रता से निवेदन है कि शायद अभी भी गुणीजन पूरी तरह सहमत न हो पाएं

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2016 at 10:20am
आदरणीय गिरिराज सर,आदरणीय समर कबीर सर, आदरणीय रवि सर आप लोगों के सुझाव के अनुरूप एक और प्रयास हुआ है, संशोधित ग़ज़ल प्रस्तुत है।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 1, 2016 at 10:55pm
आदरणीय गिरिराज सर, सुझाव पर कार्य हो रहा है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 9:13pm

आदरणीय पंकज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , इस बह्र पर मै भी पहली बार गज़ल पढ़ रहा हूँ । आपको दिल से बधाइयाँ । रदीफ के भावों का निर्वहन थोड़ा और समय चाहता है , ऐसा मुझे भी गल रहा है , बात एक दम साफ बाहर नही आ रही है । सोच के देखियेगा एक बार ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 1, 2016 at 9:04pm
आदरणीय रवि सर और आदरणीय समर कबीर सर, जिस दोष की तरफ इशारा है, उसको दूर करने का प्रयास किया जायेगा, सादर।
Comment by Samar kabeer on March 1, 2016 at 6:06pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,इस प्रयास के लिये बधाई आपको,हम भी जनाब रवि जी से सहमत हैं ।
Comment by Ravi Shukla on March 1, 2016 at 5:52pm

आदरणीय पंकजी जी पहले तो इस प्रयास के लिये बधाई स्‍वीकार करें हमारी नजर में ये एक नया प्रयोग है इस बह्र पर पहले कलाम नहीं पढा  भाव अच्‍छे लिये है आपने पर रदीफ कई जगह हमें शेर के साथ संबंध बिठाता नहीं लगा । विशेष तो विद्वत जन राय देंगे । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service