मैंने सोचा न था ......
मुझे गीत का नाम देकर
तुम बार बार
मुझे गुनगुनाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे रक्ताभ अधरों पर
अपनी अनुभूति का
अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे अंतरंग पलों में
प्रेम घनों की
नन्ही बूंदों सा बरसता
तुम कोई राग छोड़ जाओगे
सच ! ऐसे तो कभी
मैंने सोचा न था//
कभी मेरी मूक व्यथा
शून्यता से मिल
उसके अंक में विलीन हो जाएगी
सच ! ऐसा भी कभी
मैंने सोचा न था//
मेरी संसृति में
साँसे लेता जीवन राग का
अद्भुत अंकन
एक दिन विरह निशा में
खो जाएगा
सच ! ऐसा भी तो
मैंने सोचा न था//
मेरे रुधिर में आज भी
तुम्हारी स्मृति का मृदु चुंबन
मेरी कंपन का
अभिनन्दन करता है
लौट आओ प्रिय कि
तुम बिन तुम्हारा ये गीत
हर पल क्रंदन करता है
अपने ही सृजन से
मुंह मोड़ जाओगे
प्रेम का विरह से
शृंगार कर जाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. vijay nikore जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
बहुत ही सुन्दर, अति भाव-प्रधान रचना के लिए बधाई।
आ. रामबली गुप्ता जी प्रस्तुति की गहनता पर आपकी स्वीकृति देती प्रतिक्रिया का दिल से आभार।
आ. सर्वेश कुमार मिश्र जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
Waah
आ. Kewal Prasad जी प्रस्तुति की गहनता पर आपकी स्वीकृति देती प्रतिक्रिया का दिल से आभार।
आ. ram shiromani pathak जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
आ० सरना भाई जी, सुंदर एवं भावपूर्ण कविता के लिये हार्दिक बधाई . सादर
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