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अनाम रिश्ते......

अनाम रिश्ते......

 

मैंने कभी

उसके बारे में सोचा न था

न कभी

उसे ख्वाब में देखा था

उसके नाम से

मैं कभी आशना न थी

न कभी अपने दिलोदिमाग में

उसे पाने की तमन्ना का

कोई बीज बोया था

फिर भी न जाने क्यूँ 

सदा मुझे किसी साये के

करीब होने का अहसास होता था

शब की तारीकियों हों

या मेरी तन्हाईयाँ हों

मेरे हर लम्हे को

वो अपनी मौजूदगी के अहसास से

लबरेज़ करता था

उसके अहसास ने कभी

मुझे तन्हा नहीं छोड़ा था

इस अनजान रिश्ते ने

कभी मेरा दिल नहीं तोडा था

मेरी रगों में वो

खूं बन के दौड़ता था

न जाने क्यों ये दिल

बेवजह ही धड़कता था

खुली पलक की हकीकत से

ख़्वाब भी डर जाते हैं

हालात की आतिश से

रिश्ते भी मर जाते हैं

मगर सच कहूँ तो

ये अंजाने से लगने वाले

रेशमी अहसास के अनाम रिश्ते

इस दिल को

हाय! बड़े अज़ीज़ लगते हैं

 

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 11, 2016 at 12:47pm

आ.  सतविन्द्र कुमार   जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 10, 2016 at 8:12pm
लज़ीज रिश्ते.....बेहतरीन सृजन।हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 7:57pm

आ. रामबली गुप्ता      जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 7:56pm

आ. तेजवीर सिंह जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 6:36pm
अत्यंत खेद है, क्षमा करें टंकण त्रुटि हेतु
आदरणीय*** पढ़ा जाय।
बाकी सब शुभ-शुभ
Comment by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 6:31pm
शानदार प्रस्तुति आदरेया हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 6:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत ही मनमोहक और रोचक प्रस्तुति!

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