For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शाम का धुंधलका फ़ैल रहा था, वह गाड़ी में पीछे बैठी थी, रोज़ की तरह रास्ते में वही मकान आने वाला था,  उसका दिल घबराना शुरू हो गया,  उसने अपना एक हाथ दूसरे हाथ से थाम लिया और मन ही मन बुदबुदाने लगी, "ये भेड़िये क्यों अँधेरी रातें खत्म नहीं होने देते?"

 

उसने आँखें बंद करने को सोचा ही था कि वो मकान आ ही गया और गाड़ी उस मकान को पार करने लगी, आज उसकी आँखों ने बंद होने से इनकार कर दिया|

 

उसने देखा मकान के मुख्य द्वार पर उसके शिक्षक के नाम की तख्ती थी, जिससे वो पढने जाती थी, अंदर वही पुराना बगीचा था| उसकी नज़र कांच की बंद खिड़की पर पड़ी जिसमें से रौशनी आ रही थी| खिड़की की तरफ देखते ही वह चौंकी, अंदर एक साया भाग रहा था| उसने लगभग चिल्लाते हुए ड्राईवर से कहा, "गाड़ी रोको..."

 

गाड़ी एक झटके से रुकी, दूसरे ही क्षण वह उतरी और उस मकान के अंदर दौड़ कर चली गयी, बाग़ में उसे एक दरांती दिखाई दी, उसने उसे लपक कर उठाया और अंदर भागी, किस्मत से दरवाज़ा खुला हुआ था वह अंदर घुस गयी| दरवाज़ा यूं ही खामोश खड़ा रहा|

 

कुछ मिनटों में वह बाहर आई, साथ में उसके पूर्व-महाविद्यालय की पोशाक पहने एक और लड़की थी, जिसके बाल और कपड़े अस्त-व्यस्त थे| उसने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा, और दूसरे हाथ में पकड़ी दरांती को उठा कर देखा, दरांती खून से सनी थी, उसके चेहरे पर घृणा के भाव आये, लेकिन अगले ही क्षण संतोष के भाव आ गए, उसने दरांती को दूर फैंक दिया और कहा,

“अब जाकर हुआ उजाला..” 

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 475

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2016 at 10:56pm

अच्छी कथा हुई है आदरणीय बधाई स्वीकारें |

Comment by Shubhranshu Pandey on March 22, 2016 at 10:55am

आदरणीय चन्द्रेश जी, 

शिक्षा और गुरू के बदलते स्वरूप बतलाते हुये एक सुन्दर कथा. 

बाग में दूर से ही सबसे पहले दराती का दिखना. महा विद्यालय में अमुमन पोशाक नहीं चला करता है. कुछ बातों को सम्भाला जा सकता है.

सादर.

 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 19, 2016 at 10:50pm

रचना को पसंद करने के लिए और अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई के लिए सादर आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीया राहिला जी 

Comment by Rahila on March 19, 2016 at 2:31pm
बेहतरीन प्रस्तुति,आदरणीय सर जी! प्रतिशोध से ज्यादा तो लड़की ने अन्याय का खातमा किया । बहुत उम्दा, हार्दिक बधाई । सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on March 18, 2016 at 8:15pm

हार्दिक बधाई चंद्रेश जी!बेहतरीन और मार्मिक प्रस्तुति!

Comment by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 7:24pm
सुंदर कहानी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
4 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service