For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संग तुम्हारे नाम के ......

संग तुम्हारे नाम के ......

इस लम्हा
जब शून्यता ने
मुझे अंगीकार कर लिया है //
मेरे ख्वाब
सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से
बिखर गए हैं 
कम से कम
मुझ पर इतना तो रहम कर दो
तुम अपनी याद का
इक चराग तो जलने दो//

इस लम्हा
जब मेरा वज़ूद
ख़ाक में मिलने से पहले
अंतिम साँसों से
जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है
अपने अस्तित्व की याद को
मेरे ज़हन में जी लेने दो//

इस लम्हा जब
मेरी तमाम हसरतें
इस जिस्म के साथ
अलविदा कहने को
आतुर हैं
तुम अपनी मौजूदगी के
तमाम अहसास
अपने साथ ले जाओ
और मुझे इस जहां से
चैन से जाने की वज़ह दे जाओ//

आखिर कब तलक
इस लम्हे को मैं
बांधे रखूंगी
तुम क्यों नहीं समझते
साथ मेरे
ये लम्हा भी डूब जाएगा
बस इस लम्हा
मेरी एक इल्तिज़ा मान लो
इन बेजान सी आँखों का
इंतज़ार जान लो
खाके सुपुर्द होने से पहले
मैं अपने नाम को
तुम्हारे लबों पे सुलाना चाहती हूँ
और संग तुम्हारे नाम के
ख़ाक में सो जाना चाहती हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 385

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2016 at 12:35pm

आ. डॉ. गोपाल जी भाई साहिब जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2016 at 5:15pm

आ० ऐसी सैड कविता क्यों ? माना की द्रवित करती है  पर पाठक को हम क्योंदुखी करें . सुन्दर रचना एकबार फिर . 

Comment by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 1:23pm

आदरणीया  राहिला जी प्रस्तुति में निहित भावों को  मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Rahila on March 21, 2016 at 9:09pm
वाह.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । नारी मन की व्यथा का क्या खूब चित्रण किया आदरणीय सर जी! बहुत बधाई ।सादर नमन ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर छन्द हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
25 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं, हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत मनमोहक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"कुंडलिया. . . . होली होली  के  हुड़दंग  की, मत  पूछो  कुछ बात ।छैल - …"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"होली के रंग  : घनाक्षरी छंद  बरसत गुलाल कहीं और कहीं अबीर है ब्रज में तो चहुँओर होली का…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"दोहे*****होली पर बदलाव  का, ऐसा उड़े गुलाल।कर दे नूतन सोच से, धरती-अम्बर लाल।।*भाईचारा,…"
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172
"कलियुग भी द्वापर काल लगे होली में रंग गुलाल लगे, सतरंगी सबके गाल लगे। होली में रंग गुलाल लगे। इस…"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Mar 9
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
Mar 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
Mar 6
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Mar 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service