मन बहुत उदास है ...
जाने क्यूँ आज
मन बहुत उदास है
वज़ह भी कोई ख़ास नहीं
फिर भी एक
अंजानी से उदासी ने
हृदय में पाँव पसार रखे हैं //
लगता है शायद
कुछ ऐसा रह गया
जो अपनी पूर्णता को
प्राप्त न कर सका हो //
या फिर कोई लम्हा
शब की चादर में
अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ
धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते
जाग गया हो //
या फिर कोई याद
तन्हाईयों में रक्स करती
उदासी के घरौंदे में
अपनी दस्तक दे गयी हो //
या फिर बादे सबा ने
शब की छुअन को
ज़हन में ज़िंदा कर
उदासी का आकाश
ज़िंदा कर दिया हो //
बहुत सोचा
कारण फिर भी किसी कंदरा के
अन्धकार की माफिक
गहरा और भी गहरा होता गया //
हर ख़ुशी का
कोई तो कारण होता है
मगर बिन कारण ही
जाने क्यूँ ये दिल
लम्हों की सीप में बंद
उम्मीद के कफ़न में लिपटे
अनजाने मोती के लिए
अपने साथ कई सदियों की तड़प लिए
बेवज़ह ही उदास हो जाता है
और भीग कर वो अश्क में
जाने कब सो जाता है //
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. डॉ. गोपाल जी भाई साहिब जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
आ. राहिला जी प्रस्तुति को अपने प्रशंसनीय शब्दों से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
वाह वाह सरना जी . अकारण अवसाद का सुन्दर चित्र खींचा आपने और अंत तो बस कमाल ही है . सादर .
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