For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन बहुत उदास है ...

मन बहुत उदास है ...

जाने क्यूँ आज
मन बहुत उदास है
वज़ह भी कोई ख़ास नहीं
फिर भी एक
अंजानी से उदासी ने
हृदय में पाँव पसार रखे हैं //

लगता है शायद
कुछ ऐसा रह गया
जो अपनी पूर्णता को
प्राप्त न कर सका हो //

या फिर कोई लम्हा
शब की चादर में
अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ
धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते
जाग गया हो //

या फिर कोई याद
तन्हाईयों में रक्स करती
उदासी के घरौंदे में
अपनी दस्तक दे गयी हो //

या फिर बादे सबा ने
शब की छुअन को
ज़हन में ज़िंदा कर
उदासी का आकाश
ज़िंदा कर दिया हो //

बहुत सोचा
कारण फिर भी किसी कंदरा के
अन्धकार की माफिक
गहरा और भी गहरा होता गया //

हर ख़ुशी का
कोई तो कारण होता है
मगर बिन कारण ही
जाने क्यूँ ये दिल
लम्हों की सीप में बंद
उम्मीद के कफ़न में लिपटे
अनजाने मोती के लिए
अपने साथ कई सदियों की तड़प लिए
बेवज़ह ही उदास हो जाता है
और भीग कर वो अश्क में
जाने कब सो जाता है //

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1184

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2016 at 12:34pm

आ. डॉ. गोपाल जी भाई साहिब जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 25, 2016 at 12:33pm

आ. राहिला जी प्रस्तुति को अपने प्रशंसनीय शब्दों से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2016 at 5:01pm

वाह वाह सरना जी . अकारण अवसाद का सुन्दर चित्र खींचा आपने  और अंत तो बस कमाल ही है . सादर . 

Comment by Rahila on March 23, 2016 at 12:57pm
बहुत अच्छी प्रस्तुति आद. सर जी!मन की जाने कितनी भावनाओं से ओतप्रोत शानदार रचना । बहुत बधाई ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service