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कुछ गीत सुनाने हैं मुझको .....

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको 

कुछ मीत मनाने हैं मुझको
जो अब तक पूरे हो  न सके 

वो  गीत   बनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

कब मौसम जाने रूठ गया
कब शाख से पत्ता टूट गया
जो रिश्तों में हैं सिसक रहे
वो दर्द अपनाने हैं  मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

क्यूँ नैन शयन में  बोल उठे
क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे
अवगुंठन में तृषित हिया के
अंगार   मिटाने   हैं  मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं  मुझको ....

वो गंध जो भटकी  राहों  में
वो तृप्ति जो अटकी बाहों  में
रतनारी नयनों में सपनों के
कुछ  दीप जलाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको .....

मनभुवन में सिहरन है कैसी
शुष्क होठों पे कंपन है  कैसी
अवसाद पलों में सृजित  हुए
वो दृग नीर बहाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं  मुझको .....

कुछ क्षण शापित से साथ चले
कुछ भ्रम में  लिप्त  यथार्थ पले
जो  कलम  से  रूठ के  दूर  हुए
वो  रूठे  शब्द मनाने हैं मुझको
कुछ  गीत  सुनाने  हैं    मुझको ....


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on March 28, 2016 at 9:38pm

आ. Srivastava amod bindouri जी प्रस्तुति को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 28, 2016 at 1:25pm
आ सुशील सर बहुत सुन्दर रचना जिसमे
यह
कुछ क्षण शापित से साथ चले
कुछ भ्रम में लिप्त यथार्थ पले
जो कलम से रूठ के दूर हुए
वो रूठे शब्द मनाने हैं मुझको
कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

बहुत ही सुन्दर लगा
आप को बहुत बहुत बधाई नमन
Comment by Sushil Sarna on March 28, 2016 at 1:15pm

आ. amita tiwari  जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by amita tiwari on March 27, 2016 at 6:14pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on March 27, 2016 at 4:26pm

आ. आ. रामबली जी  प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार। मात्रात्मक त्रुटि शीघ्रता वश हो गयी है जिसका मुझे खेद है।  इस त्रुटि की और ध्यान आकर्षित करने का हार्दिक आभार। भविष्य में अवशय सजगता अपनाऊंगा। धन्यवाद। 

Comment by Sushil Sarna on March 27, 2016 at 4:22pm

आ. शिज्जु शकूर साहिब  प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 27, 2016 at 4:21pm

आ. तेज वीर सिंह जी प्रस्तुति को मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:32pm
सत्य ही बहुत सुंदर गीत आ. सुशील जी
किन्तु कहीं कहीं मात्रात्मक त्रुटि के कारण प्रवाह बाधित हो रहा है। आपके गीत के अधिकांश लाइनों में 16-16 मात्राएँ हैं किन्तु कतिपय लाइनों में 17 या 17 से भी अधिक मात्राएँ होने के कारण गेयता बाधित हो रही है। बाकी सब शुभ शुभ। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:04am
वाह आदरणीय सुशील सरना सर क्या खूब गीत रचा है आपने बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by TEJ VEER SINGH on March 27, 2016 at 9:24am
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बेहतरीन रचना!

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