अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।
स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।
अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।
एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।
तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।
चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।
दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।
क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।
जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।
कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।
हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।
मेरा नाम तलाश, करोगी तुम यदि इसमें।।
गर तुम पर छा गया, मेरा दीवानापन तो।
दुनियावी चालाक, हसेंगे हम दोनों पर।।
मौलिक-अप्रकाशित
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अच्छी प्रस्तुति आ० पंकज जी हार्दिक बधाई
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