For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22-22-22-22-22-22-222
मेरे शब्दों को तुम अपनी ख़ुश्बू सा महका दो तो।
मेरे छंदों को तुम अपनी पायल सा खनका दो तो।।

ये जो मनमोहक सी तेरी चाल में इक चञ्चलता है।
अधरों से छू कर ग़ज़लों को, हिरनी ज़रा बना दो तो।।

रेशम सी आवाज़ का ज़ादू, इन भावों में जगा ज़रा।
सुर सरगम का गहना इनको, प्रिये आज पहना दो तो।।

हर्फ़ बिछे हैं कागज़ पर सब, प्राण हीन तन के जैसे।
इन काली रेखाओं को भी, ज़िंदा आज बना दो तो।।

क्यों कहती हो प्रीत नहीं जब, झूठ बोलना नहीं पता।
अपनी आँखों की भाषा का, भाव आज समझा दो तो।।

मौलिक-अप्रकाशित

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2016 at 11:04am

// मत्ले में "अका" काफ़िया होने के बावजूद, आगे पूरी ग़ज़ल में "आ" काफ़िया लेने पर स्वीकार्यता होती है। कई उदाहरण बड़े शायरों के हैं//

अरे लानत भेजिये भाई, ऐसे बड़े शायरों को ! कौन हैं ये ? अरूज़ न संभाल सकने की कमियों को कैसे-कैसे आवरण दिये जाते हैं ? भाई, ये तो वही बात हुई जो सूरदास कह गये हैं - परम गंग छोड़ दुरमति कूप खनावे ! 

परम गंगा के पास का रहवैया निर्बुद्धि ही होगा जो कुआँ खुदवा कर प्यास बुझाने की बात करेगा. भाई, आप ओबीओ पर हैं ! 

शब्द प्रयोग एक बात है. और अरुज़ को निभाना और उसके प्रति स्ट्रिक्ट रहना एकदम से दूसरी बात. 

:-)))

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 3, 2016 at 10:37am
आदरणीय सौरभ सर सुझाव उत्तम है, किन्तु इस मुद्दे पर इसके पहले भी दो रचनाएँ मैंने इस पद्धति पर लिखी थीं, उसमें भी मैंने जवाब में लिखा था, दर असल-

मत्ले में "अका" काफ़िया होने के बावजूद, आगे पूरी ग़ज़ल में "आ" काफ़िया लेने पर स्वीकार्यता होती है। कई उदाहरण बड़े शायरों के हैं।

यद्यपि ग़ज़ल की "स्ट्रिक्ट" पद्धति के संदर्भ में यह एक दोष है किन्तु प्रचलन के संदर्भ में मान्य है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 11:20pm

भाई पंकज जी, इस ग़ज़ल का काफ़िया ही दोषयुक्त हो गया है. इता अपनी जगह, आ की मात्रा की जगह ’अका’ है काफ़िया.. आगे अन्य बातें बाद में

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 1, 2016 at 4:49pm
आदरणीय नीलेश सर आपने सही कहा, दूसरे व तीसरे शेर में शतरगुर्बा दोष है। सादर धन्यवाद
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 11:53am

सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई ..
मतले में महका और खनका काफ़िया आने से इता दोष लग रहा है मुझे..समर कबीर सर की राय ले लें तो प्रकाश पड़े. 
.
रेशम सी आवाज़ का ज़ादू, इन भावों में जगा ज़रा।
.
ये जो मनमोहक सी तेरी चाल में इक चञ्चलता है।... उपरोक्त दोनों मिसरे अपने सानी के साथ शतुर्गुरबा का आभास दे रहे हैं..
पुनरावलोकन आवश्यक है ..
सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 28, 2016 at 3:04pm
आदरणीय रवि सर सादर आभार। ग़ज़ल पर आप का आशीर्वाद पाकर अच्छा लगा। सादर प्रणाम
Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:35pm

आदरणीय पंकज जी अच्‍छी ग़ज़ल कही है आपने इसके लिये हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें । 

हर्फ़ बिछे हैं कागज़ पर सब, प्राण हीन तन के जैसे।
इन काली रेखाओं को भी, ज़िंदा आज बना दो तो।। इस शेर का भाव बहुत अच्‍छा लगा । बधाई । 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 27, 2016 at 4:06pm
आदरणीय सुशील सरना सर ग़ज़ल आपको पसंद आयी, अच्छा लगा। बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 27, 2016 at 4:04pm
आदरणीय श्याम नारायण सर बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 27, 2016 at 4:02pm
आदरणीय मनोज भाई सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
25 minutes ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service