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किस तरह का ये कहो नाता है.

वज्न - 2122---1122---22 / 112

किस तरह का ये कहो नाता है

उनके बिन पल न रहा जाता है

 

लूट ले जाता है खुशियाँ सारी

उसका जाना न हमें भाता है

 

रात लाती है उम्मीदें लेकिन

दिन का सूरज हमें तड़पाता है

 

धूल हो जाते हैं अरमां सारे,

चैन इस दिल को नहीं आता है

 

रात आती है सितारे लेकर

चाँद रातों की नमी लाता है

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2016 at 2:53pm

प्रस्तुत गजल पर उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी. सादर.

Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:39pm

आदरणीय अशोक जी  , बढ़िया गज़ल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करें । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2016 at 12:29pm

उचित कहा है आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपको यह गजल अच्छी लगी मेरा प्रयास सफल हुआ. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 28, 2016 at 12:28pm

गजल पर मेरे प्रयास को सराहने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेशकुमारी जी. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:16pm

आदरणीय अशोक रक्ताले सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. निवेदन है कि ग़ज़ल की बह्र या वज़्न लिखना अब परिपाटी से आगे बढ़कर अनुशासन हो गया है. कृपया लिख दीजिये. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2016 at 9:25pm

रात आती है सितारे लेकर

चाँद रातों की नमी लाता है---वाह्ह्ह  बहुत सुन्दर 

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने आ० अशोक रक्ताले जी दिल से बधाई आपको |

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2016 at 2:09pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर नमस्कार, आपको गजल अच्छी लगी मेरा प्रयास सफल हुआ. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2016 at 2:08pm

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, आपको प्रस्तुति को सादगी अच्छी लगी मेरा उत्साहवर्धन हुआ. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2016 at 2:07pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मेरी प्रस्तुति को आपकी प्रतिक्रिया का सम्बल मिला, रचनाकर्म सफल हुआ. सादर आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 8:17pm

आदरणीय अशोक भाई , बढ़िया गज़ल कही है आपने , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

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